पहली बरसी पर नम आंखों से याद किए गए “मंसूर मियां..
मिसाल है ज़िन्दगी, यूंही कोई मंसूर एजाज साबरी नहीं हो जाता..
पंच👊नामा- पिरान कलियर: मखदूम पाक से मुहब्बत और उनके जिक्र पर अश्क-बार हो जाना, ये मंसूर मियां की आदत ही नही बल्कि उनकी हयाते जिंदगी का हिस्सा बन चुका था। जब-जब हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक का जिक्र उनके कानों तक पहुँचता तो वह बेदार हो जाते और उनकी मुहब्बत में लबरेज़ नजर आने लगते, मानो मंसूर मियां ने खुद को मखदूम पाक के लिए वक्फ किया हो। जी हां दरगाह हजरत अलाउद्दीन मखदूम अली अहमद साबिर पाक के पूर्व सज्जादानशीन शाह मंसूर एजाज़ साबरी आज से एक वर्ष पूर्व इस दुनिया-ए-फ़ानी को अलविदा कह गए थे। आज एक साल गुजरने के बाद उनकी सालाना बरसी (फातिहा-ख्वानी) के आयोजन में उनसे मुहब्बत रखने वाले अकीदतमंदों का तांता लगा रहा है। मौजूदा सज्जादानशीन शाह अली एजाज साबरी ने दरबार-ए-साबरी में फातिहा खत्म शरीफ और बारगाहे इलाही में दुआएं खैर की। लंगर आम किया गया, अकीदतमंदों ने नम आंखों से मंसूर मियां को याद करते हुए जिक्र-ए-इलाही किया और दरबार शरीफ में हाजिरी लगाकर दुआएं मांगी।
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यूं तो जिंदगी जीते है लोग………..
इस दुनियां में जो भी आया उसे जाना जरूर है, लेकिन कुछ खास लोग ऐसे होते है जो अपनी पहचान दिलो पर छोड़ जाते है उनकी हयाते जिंदगी कइयों की जिंदगी संवार जाती है, कई भटके हुए मुसाफिर रास्ते पर आकर मंजिल पा लेते है, और उनकी जिंदगी एक ऐसा सन्देश छोड़ जाती है जो बरसो-बरसो तक दुनियां भर को लोगो को आइना दिखाने का काम करती है। कुछ ऐसी ही शख्सियत थी शाह मंसूर मियां, सज्जादानशीन की जिम्मेदारी मिलने के बाद खुद को ऐसे बदला की लोगो के लिए एक नजीर बन गए, फकीरी जिंदगी जीने वाले मंसूर मियां बेलौस ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ को अंजाम देते थे, और सूफीज्म के प्रचार प्रसार के लिए दिन रात एक कर देते थे। कहते है मुखालिफ भी उनका बेहद एहतेराम किया करते थे। लोगो की भलाई, बिना लालच सेवा, और भाईचारगी की मिसाल मंसूर मिया सिलसिले से जुड़े लोगों के लिए आज भी एक नजीर है।
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साल बीत गया……
पिछले साल कोविड काल के दौरान सज्जादानशीन शाह मंसूर मियां पर्दा फरमा गए थे, उनको दरगाह साबिर पाक परिसर में सुपुर्दे खाक किया गया था। आज एक साल बीत जाने के बाद मंसूर मिया की सालाना फातिमा का आयोजन किया गया, जिसमे तमाम अकीदतमंदों ने शिरकत की।
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सादगी पसंद थे मंसूर मियां….
मंसूर मियां ने अपनी हयात जिंदगी में ये नसीहत की थी कि उनके जाने के बाद उनका उर्स ना मनाया जाए बल्कि सादगी के साथ फातिहा ख्वानी हो, जब मौजूद लोगों ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा था कि उनकी कब्र साबिर पाक के आस्ताने में होगी, और वहां साबिर पाक के उर्स के अलावा किसी और का उर्स साबिर पाक की शान के खिलाफ होगा, इसलिए उन्होंने नसीहत की थी कि उनका उर्स ना मनाकर सादगी के साथ सालाना फातिहा ख्वानी की जाए, नसीहत के मुताबिक आज एक साल बाद बड़ी सादगी के साथ मंसूर मियां की सालाना फातिहा ख्वानी कराई गई।