“बाड़ ही खा रही खेत, दरगाह प्रबन्ध खुद पहुंचा रहा आय को नुकसान..
करोड़ो के ठेकों में मंत्री से लेकर सन्तरी तक चर्चाओं में..

पंच👊नामा
पिरान कलियर: कहावत है कि ‘जब बाड़ ही खेत को खाने लग जाए तो बेचारा खेत क्या करे।’ ये कहावत दरगाह दफ्तर पर एक दम सटीक बैठती है। दरगाह की व्यवस्था और आय का जिम्मा रखने वाला दरगाह दफ्तर ही ठेकेदारों की जुगलबंदी में फंसकर दरगाह की आय को समेटना शुरू कर दे तो शिकायत किससे की जाए…? जी हां दरगाह को प्रत्येक वर्ष ठेकों से करोड़ो की आय होती है, इन्ही करोड़ो में कुछ स्वार्थित अधिकारी अवसर तलाशते है, और किसी हद तक कामयाब भी हो जाते है, अंत मे नुकसान होता है दरगाह की आय को, जैसा कि इन दिनों चल रहा है। पहले चुनाव के कारण ठेकों में देरी की गई उसके बाद काम की व्यस्तता का हवाला देते हुए ढीले हुई, और किसी तरह ठेके हुए भी तो उनको अमलीजामा नही पहनाया गया। तमाम ठेकों को पूर्व की भांति डेलीवेज पर पुराने ठेकेदार ही चला रहे है, बिडम्बना ये है कि ठेकों की डेलीवेज रकम भी दरगाह दफ्तर जमा नही करा पा रहा, ऐसे में दरगाह को मोटी रकम के नुकसान देने का मंसूबा शायद किसी से छिपा ना हो, लेकिन अपने स्वार्थ के कारण कोई आवाज उठाने को तैयार नही है। जबकि करीब एक माह पूर्व ठेकों को नीलाम कर दिया गया था, लेकिन पुराने काबिज ठेकेदार पुरानी रकम के मुताबिक ही ठेकों का संचालन कर रहे है, बड़ी बात ये है कि डेलीवेज की रकम भी दफ्तर पर जमा नही कराई जा रही, इससे भी बड़ी बात ये है कि कुछ ठेके इस बार प्रबन्धनतंत्र ने निरस्त किए हुए है उसके बावजूद भी वो ठेके बदस्तूर जारी है, इसके पीछे क्या खेल चल रहा है ये चर्चाओं का विषय बना हुआ है। सूत्र बताते है कि मंत्री से लेकर सन्तरी तक इन ठेकों में इंटरस्ट ले रहे है इसके पीछे की वजह करोड़ो के ठेके माने जा रहे है।