हरिद्वार

कनखल के बड़ा अखाड़ा को वापस मिली 15 हजार करोड़ की भूमि..

बंदोबस्ती विभाग से सुप्रीम कोर्ट तक 15 साल चली कानूनी लड़ाई, हक में फैसला आने से खुशी..

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पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: 15 साल से अपना हक वापस लेने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे कनखल के श्री पंचायती बड़ा अखाड़ा उदासीन को बड़ी कामयाबी मिली है। आंध्र प्रदेश के बंदोबस्ती विभाग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद मठ को आखिरकार 15 हजार करोड़ रुपये की जमीन वापस मिल गई है। दरअसल, लीज की शर्तों का उल्लंघन करने पर अखाड़े ने गल्फ ऑयल कॉरपोरेशन के खिलाफ 2007 में लीगल नोटिस के साथ कानूनी लड़ाई की शुरूआत की थी। आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट से होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और आखिरकार सच की जीत हुई। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से कनखल स्थित अखाड़ा मुख्यालय और संतों में खुशी का माहौल है। अखाड़े के संत जल्द ही कब्जा लेने के लिए आंध्र प्रदेश के लिए रवाना होंगे।

कोठारी महंत दामोदर दस

हरिद्वार में कनखल स्थित बड़े अखाड़े के कोठारी महंत दामोदर दास महाराज ने बताया कि आंध्र प्रदेश में सदियों पहले श्री कमलापति बाबा ने श्री उदासी मठ की स्थापना की थी। कूकटपल्ली, हैदराबाद में मठ की करीब 540.30 एकड़ जमीन है। जो तेलंगाना राज्य के बंदोबस्ती पुस्तक में पंजीकृत है।

श्रीमहंत रघुमुनि

वर्तमान में मठ का प्रबंधन श्री पंचायती बड़ा अखाड़ा के श्रीमहंत रघुमुनि की ओर से नियुक्त अरुण दास महाराज कर रहे हैं। महंत दामोदार दास ने बताया कि साल 1964 से 1969 के दौरान तत्कालीन महंत बाबा सेवादास ने करीब 400 एकड़ भूमि समाज के कार्यों के लिए आइडीबीपीएल को 99 साल की लीज पर दी थी। 1976 में कंपनी को 137.19 एकड़ और जमीन को 99 साल के लिए आईडीबीपीएल को दी गई।

फाइल फोटो

बाद में इस कंपनी को गल्फ ऑयल कॉरपोरेशन ने अधिग्रहित कर लिया था। 2007 में महंत रघुमुनि ने लीज की समीक्षा की तो पाया कि लीज रेंट बहुत कम था। जबकि 2007 में मार्केट लीज रेंट के हिसाब से करीब 156 करोड रुपए प्रतिवर्ष मिलना चाहिए था। लेकिन कुल 56 हजार रुपये प्रतिवर्ष प्राप्त हो रहे थे। इसके अलावा कंपनी ने लीज शर्तों का उल्लंघन करते हुए काफी भूमि को कब्रगाह के रूप में परिवर्तित कर दिया था। इतना ही नहीं, जमीनों को बैंकों में गिरवी रखते हुए विज्ञापन देकर खुद को जमीन का मालिक प्रचारित किया जा रहा था। बाद में आईडीबीपीएल की जगह गल्फ ऑयल कॉरपोरेशन कंपनी मठ और बंदोबस्ती विभाग की अनुमति के बिना पाटेदार होने का दावा करने लगी। मठ के कानूनी नोटिस भेजने पर कंपनी ने भूमि खाली करने से इन्कार कर दिया था।

फाइल फोटो

जिसके बाद बंदोबस्ती अधिनियम के तहत बंदोबस्ती न्यायाधिकरण में एक वाद दायर किया गया। एंडोमेंटस ट्रिब्यूनल ने गल्फ ऑयल कॉर्पोरेशन को अतिक्रमणकारी घोषित करते हुए बेदखली का आदेश जारी किया। कंपनी ने 2011 में आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट में अपील दायर की। जिसको 2013 में हाइकोर्ट ने खारिज कर दिया। कंपनी ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यहां पर 13 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी की अपील को खारिज करते हुए जमीन का मालिकाना हक मठ को दे दिया है। कोठारी महंत दामोदार दास ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में भी आखिरकार न्याय की जीत हुई है। जल्द ही आंध्र प्रदेश जाकर भूमि पर कब्जा लिया जाएगा।

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