उत्तराखंड

डीजीपी साहब, एक ही इंस्पेक्टर के लिए बनी है क्या एसटीएफ..!

पंच👊नामा-ब्यूरो
केडी, हरिद्वार: डीजीपी अशोक कुमार हर पुलिसकर्मी को पहाड़ पर तैनाती के दावे भले ही करते हो लेकिन एक इंस्पेक्टर उनके इस दावे को मुंह चिढ़ा रहा है। वह कभी पहाड़ पर तैनात रहा ही नहीं है, अगर उसका तबादला पहाड़ के किसी जिले में किया भी गया तो वह या तो एसटीएफ में अटैच हो गया या फिर गढ़वाल रेंज कार्यालय को अपनी पनाहगाह बना लिया।

काल्पनिक फोटो

पुलिस महकमे में ही इस बात की चर्चा खुलेआम होती है कि भला इस इंस्पेक्टर के लिए आखिर नियम कायदे क्यों ताक पर रख दिए जाते है। प्रदेश में किसी पुलिसकर्मी को पहाड़ से उतरने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है यही नहीं मानवीय दृष्टिकोण के बावजूद भी उन्हें कई कई महीने लग जाते है।

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वहीं एक इंस्पेक्टर को पहाड़ पर तैनाती न देने का वरदान भी अफसरान ने ही दिया हुआ है। जी हां, मौजूदा समय में एसटीएफ में तैनात विवादित इंस्पेक्टर यशपाल बिष्ट अधिकारियों के इस कदर कृपा पात्र है कि, उन्हें कभी पहाड़ का मुंह ही नहीं देखना पड़ा है। देहरादून में आईएएस से विवाद तो कभी जिला आबकारी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर करकर अपने पद से हटाए गए इंस्पेक्टर ने या तो एसटीएफ में पनाह ली या फिर गढ़वाल रेंज कार्यालय को अपना ठिकाना बनाया।

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यही नहीं हरिद्वार देहरादून के अलावा किसी अन्य जिले में नौकरी तक नहीं की है, हरिद्वार की मंगलौर कोतवाली में तैनाती के दौरान जब विधायक रहे भाजपा नेता देशराज कर्णवाल से बदसलूकी के बाद हटाया गया तब भी रेंज पहुंच गए। फिर रेंज से हरिद्वार वापस लौटकर विधायक को आइना दिखाते हुए लक्सर तैनाती का आनंद लिया।

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अब फिर से यहां से उनका तबादला सीधे एसटीएफ में हुआ, ऐसे में सवाल यह हैकि एसटीएफ और गढ़वाल रेंज के कार्यालय के दरवाजे हमेशा से यशपाल के लिए आखिर क्यों खुले रहते है, इस बात की हकीकत सामने आनी चाहिए। जब हर पुलिसकर्मी को पहाड़ चढ़ाया जा रहा है तो भला यशपाल के लिए नियम कायदे अलग क्यों है। क्या उसकी तैनाती के लिए अलग से नियमावली बनी है क्या। आखिर यशपाल में ऐसी क्या काबलियत है कि पहाड़ पर सेवाएं देना प्रतिबंधित है। यह भी स्पष्ट होना चाहिए। डीजीपी को भी इस पर अपना रुख स्पष्ट करने की आवश्यकता है।

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