
पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: अक्सर विवादों में रहने वाले इंस्पेक्टर की जब जिले में दोबारा वापसी हुई तो कोतवाली की कुर्सी तुरंत ही मिल गई, इससे यही साबित होता है कि वह आला अफसरों का कितना लाडला है। पर कोतवाल का भी एक लाडला एक सिपाही है, जिसकी तैनाती भी तुरंत एक कोतवाली से इंस्पेक्टर के साथ कर दी गई।

इसे लेकर आज तक सवाल जस के तस है। जहां पूरे प्रदेश में अपने तबादले को लेकर सैकड़ों कांस्टेबल अफसरों के दफ्तरों की चौखट पर जूते घिस कर थक हार चुके हैं लेकिन तब भी उनका तबादला उनकी मनचाही जगह पर नहीं हो पाता। किसी के घर में कोई अपना बीमार है तो कोई खुद किसी बीमारी से ग्रस्त है लेकिन अफसरों के कान पर जू तक नहीं रेंगती, पर एक कोतवाल अपने लाडले सिपाही को तुरंत अपने साथ जैसे दहेज में ही ले जाता है, उस पर कोई सवाल करने वाला नहीं है।

बड़ा सवाल यह है कि आखिर उस सिपाही में ऐसी क्या खासियत थी, जिसकी वजह से कोतवाल साहब उसे अपने साथ ही रखना चाहते थे। इस सवाल का जवाब साफ होना चाहिए। अगर सिपाही में इतनी ही काबिलियत थी तो कोतवाल ने उसका तबादला जिले से बाहर भी अपने साथ क्यों नहीं कराया। जाहिर है कि दाल में कुछ काला है।

अपने साथ सिपाही को ले जाने के पीछे भी पुलिस महकमे में ही तरह-तरह की चर्चाएं अब तक बनी हुई हैं। जाहिर है कि खनन बाहुल्य क्षेत्र है, शायद कोई बड़ी कार्रवाई कार खास सिपाही की मदद से करनी हो। ऐसे में कई अफवाह उड़ना साफ है लेकिन सूबे के डीजीपी अशोक कुमार को भी साफ करना चाहिए कि आखिर इस तरह पुलिस महकमे में तबादले होते हैं क्या। अगर होते हैं तो आपके महकमें में कॉन्स्टेबल की तबादले की चिट्ठियां आखिर क्यों लंबित हैं।