आलम ए इस्लाम की तारीख बन गई कर्बला की जंग..
"हक़ और इंसाफ को जिंदा रखने के लिए शहीद हुए हुसैन, (पढ़े कर्बला की तारीख)...

प्रवेज़ आलम! पंच👊नामा: मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। इस महीने की 10 तारीख यानी आशूरा के दिन दुनियाभर में मुसलमान इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन की इराक के कर्बला में हुई शहादत की याद में ताजिया निकाल कर उन्हें याद करते हैं। इस बार 29 जुलाई को मुहर्रम माह की 10 तारीख है, इसी दिन जगह-जगह ताजिये निकालकर फातिहा और तिलावत-ए-कुरआन किया जाता है। मोहर्रम माह की 9 तारीख की देर शाम ताजियों को निकाला गया और अगले दिन 10 तारीख को क्षेत्र की कर्बला में सुपुर्दे ख़ाक किया जाएगा।

गौरतलब है कि इस्लामिक नए साल की दस तारीख को नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन अपने 72 साथियों और परिवार के साथ मजहब-ए-इस्लाम को बचाने, हक और इंसाफ कोे जिंदा रखने के लिए शहीद हो गए थे। लिहाजा, मोहर्रम पर पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद ताजा हो जाती है। किसी शायर ने खूब ही कहा है, “कत्ले हुसैन असल में मरगे यजीद है,, इस्लाम जिंदा होता है हर करबला के बाद,, दरअसल, करबला की जंग में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हर धर्म के लोगों के लिए मिसाल है। यह जंग बताती है कि जुल्म के आगे कभी नहीं झुकना चाहिए, चाहे इसके लिए सर ही क्यों न कट जाए, लेकिन सच्चाई के लिए बड़े से बड़े जालिम शासक के सामने भी खड़ा हो जाना चाहिए।दरअसल, कर्बला के इतिहास को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि यह महीना कुर्बानी, गमखारी और भाईचारगी का महीना है। क्योंकि हजरत इमाम हुसैन रजि. ने अपनी कुर्बानी देकर पुरी इंसानियत को यह पैगाम दिया है कि अपने हक को माफ करने वाले बनो और दुसरों का हक देने वाले बनो।
इसके अलावा भी इस्लाम धर्म में यौम-ए-आशूरा यानी 10वीं मुहर्रम की कई अहमीयत है। इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक, अल्लाह ने यौम-ए-अशूरा के दिन आसमानों, पहाड़ों, जमीन और समुद्रों को पैदा किया। फरिश्तों को भी इसी दिन पैदा किया गया। हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा भी अल्लाह ने इसी दिन कुबूल की। दुुनिया में सबसे पहली बारिश भी यौम-ए-अशूरा के दिन ही हुई।

इसी दिन हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पैदा हुए। फिरऔन (मिस्र के जालिम शाशक) को इसी दिन दरिया-ए-नील में डूबोया गया और पैगम्बर मूसा को जीत मिली। हजरत सुलेमान अलैहिस्सलाम को जिन्नों और इंसों पर हुकूमत इसी दिन अता हुई थी। मजहब-ए-इस्लाम के मुताबिक कयामत भी यौम-ए-अशूरा के दिन ही आएगी।मुहर्रम माह की 9 तारीख यानी शुक्रवार की देर शाम ताजिये निकाले गए। रातभर मजलिसों, तिलावत-ए-कुरआन, जलसों और जिक्र हुसैन किया गया, इस दौरान लंगर, शर्बत आदि चीजो को भी वित्ररित किया गया।
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दरगाह साबिर पाक क्षेत्र, दरगाह अब्दाल साहब, दरगाह इमाम साहब सहित महमूदपुर व अन्य गाँवो में ताजिए निकाले गए, इस दौरान इमाम हुसैन की शहादत को याद किया गया। इसके साथ ही रुड़की शहर से लेकर गांव देहातो में भी इमाम हुसैन की याद में ताजिए निकाले गए।
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“जगह-जगह निकाले गए ताजिए….
हरिद्वार: पैगंबर मोहम्मद साहब के नाती हजरत इमाम हुसैन की याद में ज्वालापुर और आस-पास के देहात में ताजिए निकाले गए। जबकि शिया अजादारों ने मातम कर कर्बला के शहीदों को याद किया। जगह-जगह लंगर बांटे और फ़ातिहाख्वानी की गई। अखाड़ों में युवाओं ने करतब दिखाए। शनिवार को मातमी जुलूस के रूप में ताजियों को अलग-अलग कर्बला में सुपुर्द ए खाक किया जाएगा।
ज्वालापुर के मोहल्ला कैथवाडा, तेलियान, कोटरवान, मैदानियान आदि जगहों पर परंपरागत तरीके से ताजिए निकाले गए। वहीं, पथरी क्षेत्र के गांव धनपुरा, घिससुपुरा व इब्राहिमपुर में ताजिये निकाले गए। जुलूस और ढोल के साथ लाठी, गदके, मुग़री, चक्र, बरेटी आदि का करतब दिखाया गया। खलीफा तैय्यब, सलीम अहमद, मोहम्मद जाकिर, सकील अहमद, जब्बार, शमशाद, इस्तकार बाली, मुस्तफा अंसारी, रियासत ठेकेदार, ताहिर, नफीस, गफ्फार, शमशाद आदि ने बताया शानिवार को गांव में लंगर लगेगा।