हरिद्वार

दुर्गम इलाके को मिला पहला पीएचडी धारक, चुनौतियों पर भारी पड़े डा. चंद्रशेखर..

रोजाना 30 किमी सफर तय कर हासिल की उच्च शिक्षा, खुद को किया साबित, दूसरों के लिए कायम की मिसाल..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: जिनके दिल में कुछ करने का जज्बा और हौंसलों में जुनून होता है, वही लोग जीवन में बदलाव लाते हैं। एक दिन लाइन उन्हीं से शुरू होती है। हरिद्वार जिले के दुर्गम और पिछले इलाके में शुमार किए जाने वाले श्यामपुर गैंडीखाता के नलोवाला गांव निवासी चंद्रशेखर ने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कर इस कहावत को साबित किया है।

फाइल फोटो

उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए जहां छात्र-छात्राओं को रोजाना 30 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता हो, उस इलाके में एक किसान परिवार के बेटे का पीएचडी धारक बनना किसी सपने से कम नहीं है। आर्थिक और भौगोलिक विषमताओं को मात देते हुए चंद्रशेखर ने इलाके में प्रथम पीएचडी धारक बनने का कीर्तिमान स्थापित करते हुए क्षेत्र के अन्य छात्र-छात्राओं के लिए भी नजीर पेश की है। बेटे की उपलब्धि से परिवार ही नहीं, पूरा इलाका गदगद है।
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फाइल फोटो

साल 2005 में 10वीं पास करने के बाद चंद्रशेखर भी क्षेत्र के उन सैकड़ों छात्रों की तरह विषम परिस्थितियों को अपनी किस्मत मानकर खेती किसानी में जुट सकते थे। लेकिन उन्होंने मुश्किल रास्ता चुना और गांव से 30 किलोमीटर दूर हरिद्वार के भल्ला इंटर कॉलेज में दाखिला लिया। कभी डग्गामार वाहन, कभी बस तो कभी लिफ्ट लेकर स्कूल आना जाना किया और साल 2008 में प्रथम श्रेणी से इंटरमीडिएट पास कर लोहा मनवाया। सफर जारी रखते हुए 2011 में गुरुकुल कांगड़ी समविवि में बीए विद्यालंकार परीक्षा भी प्रथम श्रेणी से पास की। फिर पुरातत्व विषय में परस्नातक परीक्षा पास की। इस बीच पत्रकारिता डिप्लोमा में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया।
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फाइल फोटो

साल 2017 में रैट परीक्षा के माध्यम से भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में डा. दिलीप कुशवाहा के निर्देशन में देहरादून जनपद का पुरातत्व विषय पर शोध पूरा किया। जिसके लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की जूनियर रिसर्च फैलोशिप भी मिली। लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो. ममता मिश्रा के सामने मौखिक साक्षात्कार देकर चंद्रशेखर ने डाक्टर चंद्रशेखर बनने का सफर पूरा किया। प्रो. ममता मिश्रा, विभागाध्यक्ष प्रो. प्रभात कुमार, प्रो. देवेंद्र गुप्ता ने उनके शोध कार्य की प्रशंसा की। फिलहाल एक निजी कंपनी में मैनेजर पद पर तैनात चंद्रशेखर ने फिलहाल पत्नी व बच्चों के साथ महाराष्ट्र के नासिक में हैं, लेकिन उनकी लगन और मजबूत इच्छाशक्ति की बदौलत हासिल हुई उपलब्धि की गूंज पूरे श्यामपुर व लालढांग क्षेत्र में सुनाई पड़ रही है।

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