काजी का कद ही नहीं, चुनौती भी बढ़ी, मंगलौर वालों को राष्ट्रीय नेता की नहीं, विधायक की ज़रूरत..
दूसरे राज्यों में कांग्रेस प्रभारी का दायित्व मिलने पर स्थानीय लोगों से दूर हो गए थे निज़ामुद्दीन, अब मंगलौर सीट पर राजनीति ने ली नई करवट..

पंच👊नामा-ब्यूरो
सुल्तान, हरिद्वार: कांटे के मुकाबले में नामुमकिन नजर आ रही जीत होने पर मंगलौर विधायक काजी निजामुद्दीन का कद ही नहीं बढ़ा, बल्कि उनकी चुनौती भी बढ़ गई है। हालांकि, 2022 के चुनाव में शिकस्त का सामना करने के बाद काजी निजामुद्दीन को यह समझ आ जाना चाहिए था कि मंगलौर वालों को एक विधायक की जरूरत है, ना कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता की।
लेकिन जानकार बताते हैं कि राजस्थान जैसे राज्य में कांग्रेस प्रभारी का दायित्व मिलने के बाद काजी निजामुद्दीन मंगलौर विधानसभा के लोगों और खासतौर पर अपने समर्थकों से दूर होने लगे थे।
यह भी एक वजह है कि सामने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी यानी सरवत करीम अंसारी चुनाव मैदान में ना होने के बावजूद मतगणना के दौरान कस्बे के भीतर ही काजी निजामुद्दीन की नाव डगमगाती नजर आने लगी थी।
खैर, मुश्किल वक्त में मंगलौर के लोगों ने जिन परिस्थितियों में काजी की झोली में सीट डालने का काम किया है, उससे विधायक निजामुद्दीन की चुनौती पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है।
चूंकि इस बार मंगलौर सीट पर चुनाव का जो ट्रेंड सामने आया है, उसने कांग्रेस और काजी निजामुद्दीन दोनों को ही हिला कर रख दिया है। साथ ही भविष्य की चुनावी रणनीति को लेकर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है।

भाजपा भले ही चुनाव में जीत हासिल ना कर पाई हो, मगर तीसरे स्थान से दूसरे स्थान पर जगह बनाकर उसने भविष्य के रास्ते भी खोल दिए हैं। इसलिए यह तय है कि काजी निजामुद्दीन और कांग्रेस पार्टी को मंगलौर सीट को यदि ऐसे ही “अजेय” बना कर रखना है तो कुछ बदलाव लाने पड़ेंगे। जिले के कई राजनीतिक पंडित मानते हैं कि मंगलौर चुनाव जिस माहौल में लड़ा गया, उसमें काजी निजामुद्दीन की जीत बेहद अहम है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि भाजपा के रूप में मजबूत विपक्ष मिलने से मंगलौर सीट पर राजनीति ने नई करवट ली है।
—————————————-
पिछला चुनाव भी रहा था सबक…..

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में काजी निजामुद्दीन ने अपनी सीट के अलावा अगल-बगल की कई सीटों पर चुनाव लड़वाने के लिए ताकत झोंकी। झबरेड़ा से वीरेंद्र जाती सहित कुछ प्रत्याशियों को चुनाव जितवाने में काजी काफी हद तक कामयाब भी हो गए थे। लेकिन अपनी सीट गंवानी पड़ी थी। उसे समय भी यह माना गया कि अपनी सीट के बजाय अगल-बगल की चिंता करने के कारण ही काजी निजामुद्दीन को हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि, मौजूदा चुनाव में काजी निजामुद्दीन के उन सभी साथियों ने रात दिन एक कर अपना हक अदा कर दिया।