पंच👊नामा
पिरान कलियर: अंजुमन गुलामाने मुस्तुफा सोसायटी की ओर से 14 और 15 अक्टूबर को जश्न-ए-ग़ौसुल आज़म का भव्य आयोजन किया जाएगा। इस मौके पर बरेली शरीफ़ की खानकाह-ए-शराफतिया सकलैनियां के गद्दीनशीन शाह गाजी मियां मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। देर शाम फातिहा’ख्वानी और दुआएं खैर के साथ लंगर आम का एहतेमाम किया जाएगा। कार्यक्रम को लेकर सोसायटी के पदाधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस कर जानकारी दी।
प्रेस वार्ता के दौरान सोसायटी के सचिव हाजी शादाब कुरैशी ने बताया जश्न-ए-ग़ौसुल आज़म का आयोजन हर साल अंजुमन गुलामाने मुस्तुफा सोसायटी द्वारा पिरान कलियर में धूमधाम से किया जाता है। यह आयोजन सूफी परंपराओं के अनुसार होता है, जिसमें कुरआन ख्वानी, महफिल-ए-समा, लंगर ख्वानी, और दरगाह साबिर पाक में चादरपोशी जैसे कार्यक्रम शामिल होते हैं। इस वार्षिक उत्सव में दूर दराज से सूफी अनुयायी और श्रद्धालु बड़ी संख्या में हिस्सा लेते हैं।
सोसायटी के पिरान कलियर सदर हाजी गुलशाद सिद्दीकी ने कार्यक्रम की विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि 14 अक्टूबर कुरान ख्वानी दरगाह बाबा जिलानी परिसर में होगी। इसके बाद लंगर ख्वानी का आयोजन होगा, और देर रात महफ़िल ए समा का आयोजन होगा। इसके अलावा 15 अक्टूबर की सुबह सुहेब गेस्ट हाउस से दरगाह साबिर पाक तक अकीदतमंद जुलूस के रूप में पहुँचेगे जहा दरगाह साबिर पाक में चादर और अकीदत के फूल पेश किए जाएंगे। कार्यक्रम के अंत मे मुख्य अतिथियों द्वारा विशेष दुआ के साथ कार्यक्रम का समापन होगा।
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गद्दीनशीन बनने के बाद पहली बार पिरान कलियर पहुचेंगे शाह गाजी मियां…..
पिरान कलियर में होने वाला जश्न ए ग़ौसुल आज़म हर साल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखता है। पिछले साल, बरेली शरीफ की खानकाह-ए-शराफतिया के गद्दीनशीन शाह सकलैन मियां इस दुनियां ए फानी से रुख़्सत (पर्दा फरमा गए थे) जिसके बाद उनकी जगह शाह गाज़ी मियां को गद्दीनशीन बनाया गया था। तभी से सिलसिले के तमाम फ़राइज़ शाह गाजी मियां ही अंजाम दे रहे है।
इस साल, जश्न ए ग़ौसुल आजम में शाह गाज़ी मियां का पिरान कलियर में गद्दीनशीन होने के बाद पहली बार आगमन हो रहा है। गद्दी पर बैठने के बाद इस आयोजन में उनकी पहली उपस्थिति है। यह स्थानीय समुदाय के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें वे अपने नए गद्दीनशीन के मार्गदर्शन और उपस्थिति का स्वागत करेंगे।
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क्यों मनाया जाता है जश्न ए ग़ौसुल’वरा…..गौरतलब है कि जश्न-ए-ग़ौसुल आज़म हजरत शेख अब्दुल कादिर जीलानी (रहमतुल्लाह अलैह) की याद में मनाया जाता है, जो इस्लाम के प्रसिद्ध सूफी संतों में से एक थे। उन्हें “गौस-ए-आज़म” के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “महान सहायक” या “राहनुमा।” उनका जीवन शिक्षा, आध्यात्मिकता, और सेवा का प्रतीक माना जाता है। सूफी अनुयायी इस दिन को खास तरीके से मनाते हैं, जिसमें कुरआन ख्वानी, महफिल-ए-समां, लंगर, और चादरपोशी जैसी धार्मिक गतिविधियां होती हैं। इसका उद्देश्य अल्लाह के प्रति प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देना होता है।