राजनीतिहरिद्वार

पिरान कलियर: चुनावी अखाड़े में कांग्रेस की मुश्किलें, खुद का ही वोट बैंक बना चुनौती..

चुनावी शतरंज में वज़ीर कौन.? अपने ही प्यादों ने बिगाड़ा खेल, अकरम प्रधान के सियासी समीकरण पर मंडराता खतरा..

पंच👊नामा
प्रवेज़ आलम, पिरान कलियर: राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी जानते हैं कि चुनावी समर में हर मोहरा अहम होता है, लेकिन पिरान कलियर में कांग्रेस के लिए यह खेल आसान नहीं दिख रहा। नगरपंचायत चुनाव का रंग चढ़ चुका है, और इसी गरमा-गरमी के बीच हाजरा बानो पत्नी अकरम प्रधान कांग्रेस के सिंबल पर मैदान में हैं। मगर राजनीति के इस अखाड़े में उनके सामने एक नहीं, बल्कि कई चुनौतियों की फ़ौज खड़ी है।कहावत है कि दुश्मन से पहले अपने ही जख्म देते हैं। हाजरा बानो के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है—कांग्रेस का बिखरता हुआ वोट बैंक। हर दांव, हर चाल पर कांग्रेस का आत्मघाती खेल सामने आ रहा है। सबसे बड़ा सिरदर्द हैं वे बागी उम्मीदवार, जिन्होंने पार्टी टिकट न मिलने पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक दी है। कांग्रेस विचारधारा से जुड़े इन उम्मीदवारों की अपने समर्थकों के बीच अच्छी पकड़ है, और इनकी सेंधमारी कांग्रेस की फसल को बुरी तरह काट सकती है।
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बागी बवाल: ‘खुद का ही किला फतह करना मुश्किल….कांग्रेस के टिकट को लेकर आखिरी वक्त तक कई नामों की चर्चा थी, मगर जैसे ही पार्टी ने हाजरा बानो को प्रत्याशी घोषित किया, दावेदारों में असंतोष फूट पड़ा। यही नाराजगी अब बगावत का रूप ले चुकी है। जिन प्रत्याशियों को पार्टी ने दरकिनार किया, उन्होंने सियासी कसम खाई और निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। हालात ये हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी के लिए हर निर्दलीय उम्मीदवार अब सीधा खतरा बन चुका है। हालात ने ऐसा मोड़ लिया है कि हाजरा बानो को दोहरी मुश्किलों से लड़ना होगा—अपने बागियों से भी और अपने ही समर्थकों की नाराजगी से भी।
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बीते चुनाव का सबक, आखिर सीखा क्या….?दिलचस्प बात यह है कि पिछले चुनाव में अकरम प्रधान ने कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस बार अकरम प्रधान की पत्नी को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है, लेकिन अगर कांग्रेस प्रत्याशी ने ये मान लिया कि टिकट ही चुनावी जीत की गारंटी है, तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल होगी। राजनीति के मंझे खिलाड़ी जानते हैं कि चुनावी गणित में हर वोट का महत्व होता है, और इस बार कांग्रेस को खुद अपनी ही बाजी बचाने में मशक्कत करनी होगी।
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कौन बनेगा सरताज…?कहते हैं, “सियासत में अंतिम बाजी उसी की होती है जो दांव का सही वक्त पहचानता है।” पिरान कलियर का यह चुनावी घमासान एक ऐसा युद्ध बन चुका है जहां हर वोट सोने से ज्यादा कीमती है। हाजरा बानो के सामने अब दोहरी चुनौती है—कांग्रेस के वोट बैंक को बचाना और बागियों के हमले से खुद को सुरक्षित रखना। क्या कांग्रेस अपने ही लगाए कांटों को हटा पाएगी, या फिर इन्हीं में उलझकर रह जाएगी? इस सवाल का जवाब जनता के फैसले में छिपा है।

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