मुख्यमंत्री जी! इधर भी डालिए एक नज़र, वक्फ दफ्तर में जीरो टॉलरेंस की नीति को लगाया जा रहा बट्टा..
अपने निजी वाहन में 1150 लीटर पेट्रोल डलवा गई दरगाह प्रबंधक, दान के पैसों का खेल आरटीआई से आया सामने..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: उत्तराखंड सरकार के ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावों के बीच पिरान कलियर स्थित विश्व प्रसिद्ध दरगाह साबिर पाक के कार्यालय की कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। दरगाह की प्रबंधक रजिया बेग के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं का एक और मामला सामने आया है, जिससे वक्फ कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार की परतें लगातार उजागर हो रही हैं।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई एक सूचना से बड़ा खुलासा हुआ है कि दरगाह प्रबंधक रजिया बेग ने वर्ष 2024-25 में दरगाह सुपरवाइजर द्वारा बनाए गए स्टॉक रजिस्टर में कुल 1150 लीटर पेट्रोल अपने निजी वाहन के लिए व्यय किया है।
यह खर्च दरगाह कोष से किया गया जबकि उनकी तैनाती से संबंधित स्पष्ट आदेश में उल्लेख था कि उन्हें किसी भी अतिरिक्त कार्य के लिए वेतन अथवा भत्ता देय नहीं होगा।
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब उक्त पेट्रोल व्यय की पुष्टि स्वयं दरगाह सुपरवाइजर द्वारा स्टॉक पंजिका में अंकित की गई प्रविष्टियों से हुई। सरकारी आदेशों की अवहेलना करते हुए निजी लाभ लेने का यह उदाहरण साफ तौर पर वित्तीय कदाचार की श्रेणी में आता है।
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पहले भी उजागर हो चुके हैं घोटाले…..गौरतलब है कि हाल ही में जिलाधिकारी हरिद्वार द्वारा जारी एक पत्र में पीआरडी स्वयंसेवक की नियमविरुद्ध नियुक्ति पर भी प्रबंधक रजिया बेग को कटघरे में खड़ा किया गया था। आदेश के अनुसार, उस कर्मचारी को दिए गए मानदेय की वसूली भी प्रबंधक से की जानी है।
इतना ही नहीं, उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के सीईओ द्वारा भेजे गए कई नोटिसों में भी दरगाह प्रबंधक की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए गए हैं। कई शिकायतों की जांच अभी भी हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
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उर्स से पहले उठे बड़े सवाल….स्थानीय जनमानस का कहना है कि जब दरगाह प्रबंधक के विरुद्ध इतने गंभीर आरोप लगे हैं, तो उन्हें आगामी सालाना उर्स/मेला जैसे बड़े आयोजन की ज़िम्मेदारी सौंपना प्रशासन की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
यह वही आयोजन है जिसमें करोड़ों रुपये के टेंडर और व्यवस्थाएं होती हैं। ऐसे में वित्तीय जवाबदेही की अनदेखी करना समझ से परे है।
लोगों का सवाल है कि — जब प्रमाण, आदेश और रिपोर्टें सभी कुछ साफ हैं, तो फिर कार्रवाई में देरी क्यों..? क्या उच्चाधिकारियों के हाथ किसी ने बाँध रखे हैं, या फिर कोई और कारण है, जो हरिद्वार की इस प्रतिष्ठित दरगाह को पारदर्शिता और स्वच्छता से वंचित कर रहा है.?
अब देखना यह होगा कि शासन और प्रशासन इन खुलासों के बाद क्या ठोस कदम उठाते हैं, या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।