“दरगाह प्रबंधक ने पीआरडी जवान को बनाया ड्राइवर, सरकारी धन से भराया पेट्रोल, धामी जी ये कैसी जीरो टॉलरेंस..
आरटीआई में उजागर हुआ घोटाला, डीएम की जांच में भी साबित हुई गड़बड़ी, कार्रवाई के नाम पर खींचे जा रहे हाथ..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की “भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस” नीति की पिरान कलियर स्थित वक्फ दरगाह कार्यालय में धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। दरगाह प्रबंधक रजिया बेग पर एक पीआरडी जवान को निजी वाहन का ड्राइवर बनाने और दरगाह के कोष से पेट्रोल भरवाने का गंभीर आरोप नहीं, बल्कि आरटीआई दस्तावेजों से उजागर हुआ सच्चाई पर आधारित घोटाला सामने आया है।
दरगाह कार्यालय के दायित्व के लिए उन्हें बिना मानदेय के सशर्त प्रभार दिया गया था, लेकिन वास्तविकता यह है कि कई वर्षों से एक पीआरडी जवान को उनके निजी वाहन के ड्राइवर के रूप में नियुक्त किया गया है।
जबकि उसका वेतन व ईंधन खर्च दरगाह के खाते से वहन किया जाता रहा है। आरटीआई के माध्यम से प्राप्त दस्तावेजों में इस खर्च का साफ-साफ उल्लेख है।
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जांच में भी हुई पुष्टि, कार्रवाई पर चुप्पी….जिलाधिकारी के निर्देश पर विभागीय जांच में भी अनियमितताएं सही पाई गईं। इसके बावजूद अब तक कार्रवाई के नाम पर केवल फाइलों की खानापूर्ति चल रही है। आरोपियों पर किसी प्रकार की ठोस प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की गई है।
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शिकायतकर्ता ने ये मांगे उठाईं….अहसान निवासी बेडपुर ने अपनी शिकायत में साफ तौर पर मांग की है कि दोषी प्रबंधक के विरुद्ध विभागीय जांच के बाद कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाए। साथ ही दरगाह कोष से हुए धन के दुरुपयोग की वसूली कराई जाए और भविष्य में ऐसी अनियमितताओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए स्थायी निगरानी व्यवस्था बनाई जाए।
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शासनादेश की उड़ रही धज्जियां…वर्तमान शासनादेशों के अनुसार, कोई भी सरकारी अथवा वक्फ संपत्ति निजी कार्यों के लिए उपयोग में नहीं लाई जा सकती। बावजूद इसके प्रबंधक रजिया बेग ने सरकारी पीआरडी जवान की सेवाएं निजी ड्राइवर के रूप में लेना और उसका वेतन/पेट्रोल खर्च दरगाह कोष से भरवाना सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का ज्वलंत उदाहरण है।
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फंड का दुरुपयोग, जवाबदेही शून्य….सूत्रों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में प्रबंधक के निजी वाहन में दरगाह कोष से हजारों रुपये का पेट्रोल भरवाया गया। लेकिन इस राशि की जवाबदेही किसी स्तर पर तय नहीं की गई है। अब तक न कोई विभागीय चेतावनी दी गई और न ही वसूली की प्रक्रिया शुरू की गई है।
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धामी सरकार की नीतियों पर सीधा सवाल…..यह पूरा मामला मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार विरोधी रुख पर सवालिया निशान छोड़ता है। जिस प्रणाली को पारदर्शी और जवाबदेह बताया जा रहा है, उसी में ऐसी गंभीर अनियमितताएं सामने आना प्रशासन की कार्यशैली पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
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आखिर कौन दे रहा संरक्षण….?सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब शिकायतें सामने आईं, जांच में गड़बड़ी भी साबित हुई, आरटीआई में तथ्य भी उजागर हो गए। फिर कार्रवाई क्यों नहीं..? आखिर कौन लोग हैं जो इन गड़बड़ियों को संरक्षण दे रहे हैं.? क्या कोई सत्ताशक्ति अथवा विभागीय मिलीभगत इस भ्रष्टाचार को ढाल बनाकर खड़ा है…?