“दरगाह का निज़ाम सवालों के घेरे में — वित्तीय अधिकार सीज, पर प्रबंधक की मनमानी जारी, पीआरडी जवान अब भी ड्राइवर की ड्यूटी पर मुस्तैद..!
वक्फ बोर्ड की जांच में गड़बड़ियों की पुष्टि, फिर भी कार्रवाई अधूरी — दरगाह दफ्तर अब भी उन्हीं के हवाले..!

पंच👊नामा
रुड़की: पिरान कलियर स्थित वक्फ दरगाहों का निज़ाम एक बार फिर चर्चाओं में हैं। श्रद्धा के इस केंद्र का प्रशासनिक दफ्तर लंबे समय से अपनी कारगुजारियों के लिए सुर्खियों में बना हुआ है
— कभी दान के पैसों के गोलमाल को लेकर, तो कभी ठेका प्रथा में स्वार्थ और व्यवस्थाओं में बंदरबांट के आरोपों पर। यहां तक कि पूर्व में एक प्रबंधक रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तार भी हो चुका है। लेकिन अफसोस, कि जायरीनों की संख्या और दान में तो बढ़ोतरी हुई, मगर व्यवस्था उसी पुराने ढर्रे पर चलती रही।
दरअसल, पिरान कलियर की वक्फ दरगाहों की जिम्मेदारी जिला प्रशासन के अधीन है। परंपरा के अनुसार, किसी सरकारी कर्मचारी को अतिरिक्त चार्ज देकर दरगाह प्रबंधक नियुक्त किया जाता है। वर्तमान में यह जिम्मेदारी एक सरकारी स्कूल की अध्यापिका रजिया बेग के पास है, जिनके नियुक्ति आदेश में यह स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि इस कार्य के लिए कोई अतिरिक्त भत्ता देय नहीं होगा।
लेकिन अब वही प्रबंधक गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। आरोप है कि उन्होंने एक पीआरडी जवान को अपने निजी वाहन का ड्राइवर बना रखा है। अपने वाहन में दरगाह के कोष से पेट्रोल तक भरवाने का खुलासा आरटीआई दस्तावेज़ों से उजागर हो चुका है।
हाल ही में उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की विशेष जांच रिपोर्ट में दरगाह प्रबंधन से जुड़ी गंभीर वित्तीय अनियमितताएं सामने आई हैं। रिपोर्ट के अनुसार— ठेकों का संचालन बिना अनुमोदन के, खातों से निकासी बिना अनुमति के, और विभिन्न मदों में बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बड़ियां पाई गईं।
इन निष्कर्षों के बाद जिलाधिकारी हरिद्वार ने प्रबंधक रजिया खान को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और सात दिन में लिखित जवाब तलब किया है। साथ ही, उनके सभी वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार तत्काल प्रभाव से सीज कर दिए गए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि वित्तीय अधिकार निलंबित होने के बावजूद प्रबंधक महोदया ने न तो पीआरडी जवान की सेवा लेना बंद किया और न ही दरगाह दफ्तर में सक्रिय रहना छोड़ा। स्थानीय लोगों का कहना है कि — “जब जिलाधिकारी ने वित्तीय अधिकार सीज कर दिए हैं, तो फिर ऐसे अधिकारी को दरगाह कार्यालय की बागडोर क्यों सौंपी गई है.?”
गौरतलब है कि इससे पहले भी दरगाह कार्यालय से महत्वपूर्ण फाइलों के गायब होने की शिकायतें सामने आ चुकी हैं। अब जब एक बार फिर वित्तीय गड़बड़ियों की गूंज है, तो प्रशासनिक सतर्कता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
सवाल अब सीधा है — क्या जिलाधिकारी की कार्रवाई से दरगाह का निजाम सुधरेगा या यह भी एक “औपचारिक नोटिस” बनकर रह जाएगा.? क्योंकि यदि वित्तीय अधिकार सीज करने के बाद भी आदेशों की अवहेलना हो रही है, तो यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही है बल्कि कानूनी उल्लंघन भी। ये बात भी समझ आनी चाहिए कि जहां आस्था झुकती है, वहां जवाबदेही भी उतनी ही ऊंची होनी चाहिए।



