हरिद्वार

ई-रिक्शा चलाकर अपने बच्चों का भविष्य संवार रही “रुड़की” की बहादुर मां”

समाज के लिए एक मिसाल, मेहनत और हौंसले की सच्ची दास्तां..

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पंच👊नामा
प्रवेज़ आलम, रुड़की: “मुसीबतों के साये में वो हौंसला दिखाती है, ई-रिक्शा चलाकर, जिंदगी की जंग जीत जाती है। जिसने पति खोया, फिर भी कदम नहीं डगमगाए, अपने बच्चों की खातिर, हर मोड़ पर मुस्कुराती है। जी हां इस दुनिया में मां से बड़ा योद्धा कोई नहीं है। कुछ दिन पहले साउथ की एक मशहूर फिल्म के डायलॉग को रुड़की की एक बहादुर महिला साकार कर रही है। जिसने जिंदगी के हर मोड़ पर मुश्किलें झेली, कई उतार चढ़ाओ देखें, लेकिन हिम्मत नही हारी। रुड़की नई बस्ती की एक महिला ने जिंदगी की चुनौतियों को हराकर ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई है। कोरोना काल में पति की मौत के बाद जब घर-घर काम करने से गुजारा नहीं चला, तो उसने चाय का ठेला लगाया, लेकिन समाज ने उस पर भी ताला जड़ दिया। हार न मानते हुए अब वह ई-रिक्शा चलाकर अपने बच्चों का पेट भर रही है, और हर दिन संघर्ष की नई इबारत लिख रही है।
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जनप्रतिनिधियों से भी लगाई मदद की गुहार…..रुड़की की इस जुझारू महिला ने अपने संघर्ष के रास्ते में जनप्रतिनिधियों से भी मदद की गुहार लगाई, लेकिन उम्मीद के मुताबिक हाथ खाली ही रहे। कई जनप्रतिनिधियों से सहायता की आस थी, मगर जब कोई ठोस मदद नहीं मिली, तो उसने खुद ही अपने हालात बदलने का फैसला किया। अब ई-रिक्शा चलाकर वह न सिर्फ अपने बच्चों का पेट पाल रही है, बल्कि समाज को अपनी मेहनत से एक नई प्रेरणा दे रही है।
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कोरोना कॉल में छूट गया हमसफ़र का साथ…….

फाइल फोटो:

कोरोना काल में जब पूरी दुनिया थम सी गई थी, तब रुड़की की इस बहादुर महिला का सबसे बड़ा सहारा, उसका हमसफ़र, हमेशा के लिए साथ छोड़ गया। पति की हार्ट अटैक से मौत के बाद जिंदगी ने एक कड़ा मोड़ लिया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। अपने बच्चों का पेट पालने के लिए वह संघर्ष की राह पर निकल पड़ी, पहले घर-घर काम किया, फिर चाय का ठेला लगाया, और अब ई-रिक्शा चलाकर परिवार को संभाल रही है।
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ई रिक्शा बनी रोजी रोटी का सहारा…….पति के गुजर जाने के बाद जिंदगी में आई चुनौतियों से लड़ते हुए रुड़की की इस महिला ने ई-रिक्शा को अपनी रोजी-रोटी का सहारा बना लिया है। तीन बच्चों की मां अब किराए पर ई-रिक्शा चलाकर रोज़ाना 500 से 600 रुपये कमाती है, जिसमें से 300 रुपये रिक्शा का किराया चुकाती है। बचे पैसों से महिला अपने दो बेटों और एक बेटी का पालन पोषण करती है।
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समाज के लिए आईना…….पति के जाने के बाद संघर्षों से भरी जिंदगी को ई-रिक्शा के पहियों पर दौड़ाते हुए, रुड़की की इस महिला ने समाज के लिए एक मिसाल कायम की है। जनप्रतिनिधियों से मदद की गुहार लगाने के बाद भी, जब कोई सहारा नहीं मिला, तब उसने खुद को संभालते हुए ई-रिक्शा को अपनी रोजी-रोटी का जरिया बनाया। तीन बच्चों की परवरिश करते हुए, यह महिला समाज के लिए एक आईना है—जो बताता है कि हिम्मत और मेहनत से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।

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