“उर्स-ए-साबिर पाक में जायरीनों संग ‘भीख माफिया’ का मेला, बच्चों की बढ़ती भीखगिरी बन रही नई मुसीबत..

पंच👊नामा
पिरान कलियर: साबिर पाक के सालाना उर्स/मेले की रौनक दिन-ब-दिन बढ़ रही है। जायरीन दूर-दराज़ से हाज़िरी देने पहुँच रहे हैं, कारोबारियों और दुकानदारों की आमद से बाज़ार गुलज़ार होते जा रहे हैं। लेकिन इस रौनक के बीच एक कड़वी हक़ीक़त भी सिर चढ़कर बोल रही है— दरगाह शरीफ़ और आस-पास की गलियों में भिखारियों का ‘जमावड़ा’ जायरीनों के लिए अब आफ़त बनता जा रहा है।मंज़र कुछ ऐसा है कि अगर किसी जायरीन ने रहम खाकर किसी एक भिखारी को सिक्का थमा दिया, तो देखते ही देखते पूरा झुंड उसे यूं घेर लेता है जैसे कोई चोर पकड़कर भीड़ के हवाले कर दिया गया हो। नौबत यहां तक पहुँच जाती है कि छीना-झपटी में जायरीनों के कपड़े तक फट जाते हैं।
प्रशासन का ढीला रवैया, भीख का कारोबार बुलंदी पर…..
गौरतलब है कि पहले के सालों में उर्स/मेले से पहले ही प्रशासन अभियान चलाकर भिखारियों को हटा देता था, जिससे उनकी तादाद काबू में रहती थी। मगर इस बार अब तक ऐसी कोई कार्रवाई नज़र नहीं आई। नतीजा यह कि रोज़ाना इनकी गिनती बढ़ती जा रही है और जायरीनों की परेशानियाँ भी।सबसे हैरतअंगेज़ बात ये है कि भीख मांगने वालों में बच्चों की तादाद कई गुना बढ़ चुकी है। जबकि मुल्कभर में ‘भिक्षा नहीं, शिक्षा’ जैसे नारे गूंजते हैं और सरकारी योजनाओं की फेहरिस्त लंबी है। लेकिन कलियर के उर्स/मेले में ये तमाम तहरीकें महज़ सफेद हाथी साबित हो रही हैं।
बच्चों की मजबूरी या माँ-बाप की बेरहमी….?
सूत्र बताते हैं कि अक़्सर इन मासूम बच्चों के माँ-बाप ही उन्हें भीख मांगने के लिए भेजते हैं। शाम को बच्चे चंद रुपये लेकर लौटते हैं और उनके पिता उसी कमाई से शराब और नशे का सामान खरीदकर, अपनी नशे की लत पूरी करते है। हालात यह हैं कि मासूमियत यहाँ रोज़ नीलाम होती है और मासूम आहें हवा में गुम।उर्स-ए-शरीफ़ का मक़सद अम्न-ओ-सलामती और इंसानियत का पैग़ाम देना है, मगर दरगाह के बाहर का मंज़र इस पैग़ाम पर सवालिया निशान खड़ा करता है। जिन गलियों में दुआओं की खुशबू बिखरनी चाहिए, वहाँ अब हर कदम पर भीख का साया मंडरा रहा है।अगर यही हालात रहे तो उर्स के मुख्य दिनों में जायरीन को इबादत से ज़्यादा भिखारियों से जूझना पड़ेगा। सवाल ये है कि— क्या प्रशासन अब भी नींद से जागेगा, या फिर इस बार का उर्स ‘भीखगिरी’ के नाम लिख दिया जाएगा..?