धर्म-कर्म

बड़े पीर की ग्यारवी शरीफ पर लुधियाना में लगता है रूहानियत का मेला..

दरबार ए दस्तगीर का ऐतिहासिक इतिहास, सैकड़ो सालों से लोग हो रहे फैजियाब..

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पंच👊नामा-ब्यूरो
लुधियाना: भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश हैं जहां आस्था, श्रद्धा और विश्वास की त्रिवेणी का संगम न केवल शहरों बल्कि गांव देहातों में भी देखा जाता है। जहां नित दिन अधिकांष आश्रमों से धर्म और आध्यात्म आधारित उपदेश गूंजते हैं। तो वही ख़ानक़ाहों से सूफियों के मानव कल्याण का संदेश देते प्रवचन सुनाई देते है। दुनिया को विश्व बन्धुत्व का संदेश देती खानकाहे दुनिया भर में वैचारिक स्तर पर लड़ रहे लोगो को ईश्वर एक होने और इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म होने का संदेश दे रही हैं। जिसकी एक बानगी लुधियाना शहर के रोशनी ग्राउंड पुरानी सब्जी मंडी स्थित दरबार ए दस्तगीर पर देखने को मिलती हैं। इतिहास बताता है कि इस जगह पर सैकड़ो साल पहले बड़े पीर शेख अब्दुल कादिर जिलानी का रोशनी का मेला लगा हुआ था, जिन्हें लोग “रोशनी पीर” के नाम से जानते थे, दिलचस्प बात ये हैं कि ये मेला इस्लामिक था लेकिन इसे मनाने वाले अकीदतमंद गैर मुस्लिम यानी हिन्दू धर्म से थे, जिसे रब्बी उसानी के महीने की 9/10 और 11 तारीख़ को हर साल मनाया जाता था। तभी से आजतक दरबार ए दस्तगीर पर बड़े पीर गौस पाक की ग्यारवी शरीफ मनाने का एहतेमाम किया जाता रहा हैं। वर्तमान में दरबार के गद्दीनशीन पवन अटवाल (गुलाम अब्दुल कादिर जिलानी) की सरपरस्ती और सज्जादानशीन माहिर अटवाल उर्फ गुलाम हुसैन की देखरेख में ग्यारवी शरीफ का आयोजन बड़े हर्षोल्लास के साथ किया जाता हैं। कार्यक्रम में दूरदराज से अक़ीदतमंद दरबार शरीफ पहुँचते हैं और फैजियाब होते हैं। इस बार 25 अक्टूबर से 27 अक्टूबर तक 146 वा रोशनी मेला ग्यारवी शरीफ के नाम से मुनक़्क़ीद होगा। कार्यक्रम को लेकर तैयारियां जोरों पर है, दरबार शरीफ से लेकर आसपास की जगहों को भी लाइटों से सजाया जा रहा है। लंगर ए आम का विशेष इंतेज़ाम किया गया है।
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“सरकारी गैजेट में दर्ज इतिहास…..
इस दरबार का इतिहास लोधी कॉल सन 1450 से भी पुराना है। जिसके तथ्य सरकारी गैजेट में मिलते है। जानकार बताते है कि सन 1878 में जब अंग्रेजी शासनकाल था तब अंग्रेजी सरकार ने लुधियाना शहर की हदबंदी के लिए ये जिम्मेदारी उस समय के टाउन प्लानर Mr. Gorden Walker को सौंपी थी। जब Gorden Walker लुधियाना शहर की हदबंदी पर काम कर रहे थे तब वह इस जगह पहुँचे जहा उस समय रोशनी मेला चल रहा था। उन्होंने पूरा मामला देखा और आंखों देखा घयाल सरकारी गैजेट में लिखा/दर्ज किया, जिसे सरकारी गैजेट में देखा जा सकता है।
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“रोशनी ग्राउंड क्यों पड़ा इस जगह का नाम…..
अकीदतमंद (श्रदालु) रोशनी पीर के आँगन में दिये जलाते एयर चौकी भरते, ये सिलसिला सारी सारी रात चलता, जिसमे श्रद्धालु अपने पीर शेख अब्दुल कादिर जिलानी को याद करते और उनका नाम जपते। पूरा परिसर रोशनी से जगमगा उठता, यही वजह है की लोग इस जगह को रोशनी ग्राउंड के नाम से भी जानने लगे।
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“अकीदतमंदों की आस्था….
पीर साहब को मानने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता था कि अगर कोई पशु (गाय/भैंस) दूध देना बंद कर दे तो श्रद्धालु उस पशु को रोशनी मेले में अपने साथ लेकर आते रातभर चौंकी भरते और वापस लौटने पर पशु दूध देने लगता। इसके साथ ही एक परंपरा भी खूब रही जिसमे मस्तमलंग धुना जलाते और मस्त होकर यानी नंगे पांव नाच नाच कर उसे बुझाते और जय जय कार करते।
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“इंसानियत का पैगाम दिया…..
लुधियाना के बुजुर्गों का कहना है एक समय हजरत सैय्यद शाह कुमेस (दरगाह साढौरा शरीफ) यही पर लोगो इंसानियत की तालीम (शिक्षा) दिया करते थे। लोगों को दीन ए मुहम्मदी और इबादत का तरीका सिखाया करते थे। आज भी उनके वंशज सैय्यद मुन्ने मिया जो दरगाह सैय्यद कुमेस मियां के पोते है रुड़की के सिकरौडा गाँव मे लोगों को सूफीईज्म की तालीम दे रहे है।

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