हरिद्वार

श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज की नसीहत,“कथा को न बनाएं व्यापार, मर्यादा में करें प्रवचन..

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष बोले, फिल्मी गानों और तालियों की कथा सनातन परंपरा नहीं..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और श्री मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने वर्तमान समय में कथाओं के बाजारीकरण पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि कथा एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है, इसे मनोरंजन का साधन या व्यापारिक माध्यम नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कथावाचकों से आग्रह किया कि वे कथा से पहले भागवत का गंभीर अध्ययन करें और केवल ज्ञान, भक्ति और मर्यादा आधारित प्रवचन ही करें। श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि आजकल कथाओं में जिस प्रकार फिल्मी गाने बजाए जाते हैं और श्रोताओं से तालियां बजवाई जाती हैं, वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। कथा में शब्दों की मर्यादा और धर्म की गरिमा का ध्यान रखा जाना चाहिए।”
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डोगरे जी महाराज को बताया आदर्श…..उन्होंने कहा कि डोगरे जी महाराज जैसे संतों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिन्होंने कथा को जीवन साधना का माध्यम बनाया, न कि प्रदर्शन का। श्रीमहंत ने स्पष्ट कहा कि हर किसी को कथा कहने का अधिकार है, लेकिन जब तक व्यक्ति गहराई से शास्त्रों का अध्ययन न कर ले, तब तक वह धर्म की सही व्याख्या नहीं कर सकता। कथा के नाम पर जो कुछ आजकल हो रहा है, वह दुखद है। कथा प्रवचन करने से पहले कथावाचकों को चाहिए कि वे शब्दों पर संयम रखें और सनातन संस्कृति की मर्यादाओं के अनुरूप ही मंच से बोलें।
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इटावा की घटना को बताया दुर्भाग्यपूर्ण…..इटावा में हाल ही में कथावाचक द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणी और उसके बाद उपजे जातिगत विवाद पर भी श्रीमहंत रविंद्रपुरी ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा— “सनातन धर्म में जात-पात का कोई स्थान नहीं है। इटावा में जो हुआ, वह बहुत ही दुखद है। संत समाज को चाहिए कि वह विवादित बयानों से बचे और समाज में एकता और सद्भाव का संदेश दें।” श्रीमहंत ने लोगों से भी अपील की कि वे जातीय विवादों में न उलझें और सनातन धर्म की मूल भावना — समरसता और समानता — को बनाए रखें।
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“संयम और अध्ययन ही बने कथावाचकों की पहचान….उन्होंने कहा कि यदि कथावाचक अपने शब्दों और व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रखेंगे, तो इससे धर्म और समाज दोनों की हानि होगी। आज आवश्यकता है कि कथा मंच श्रवण, मनन और आत्मचिंतन का माध्यम बने, न कि प्रदर्शन और भीड़ जुटाने का साधन। श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज के इस स्पष्ट और संतुलित वक्तव्य को संत समाज के कई वरिष्ठ संतों का भी समर्थन मिल रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में कथाओं की गुणवत्ता और मर्यादा को लेकर व्यापक विमर्श शुरू हो सकता है

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