हरिद्वार

युवाओं और छात्रों के माध्यम से दूर होंगी समान नागरिक संहिता की भ्रांतियां..

एसएमजेएन पीजी कॉलेज में विचार गोष्ठी में बोले श्रीमहंत रविंद्र पुरी, समय की मांग है समान नागरिक संहिता, मुख्यमंत्री धामी को दिया साधुवाद..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: एस.एम.जे.एन. पीजी कॉलेज में आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ द्वारा समान नागरिक संहिता पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। विचार गोष्ठी की अध्यक्षता अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज ने की। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापको और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय संदेश में श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज ने कहा कि समान नागरिक संहिता बदलते समय की मांग और राष्ट्र की आवश्यकताओं दोनों की पूर्ति करता है। वास्तव में किसी समाज की प्रगति शीलता का पैमाना यह है कि उसके समस्त नागरिकों पर कौन सी विधि लागू होती है, यदि हमें भारत को सशक्त राष्ट्र बनाना है तो इसके समस्त नागरिकों के लिए उत्तराधिकार तथा संपत्ति हस्तांतरण के समान नियम होने आवश्यक है। उन्होंने इस अवसर पर संविधान निर्माताओं की मूल भावना को याद किया जिसमें उन्होंने भारत के सभी नागरिकों को एक समान विधि बनाने की संस्तुति की। श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को साधुवाद देते हुए कहा कि उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य है जिसने यूसीसी के लिए पहल की है। उन्होंने कहा कि युवाओं एवं छात्र छात्राओं के माध्यम से यूसीसी की भ्रान्तियाँ दूर करने में शिक्षण संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका है।महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सुनील कुमार बत्रा ने कहा कि आज राष्ट्र उस निर्णय के चौराहे पर खड़ा है जहां पर भविष्य में उसकी दशा और दिशा तय होगी। डॉ बत्रा ने कहा कि जब पूरे राष्ट्र के लिए एक कर हो सकता है एक आपराधिक संहिता हो सकती है तो एक नागरिक संहिता क्यों नहीं हो सकती। उन्होंने आग्रह किया कि समाज के किसी भी समूह को संवाद की प्रक्रिया से वंचित नहीं करना चाहिए और समरसता के माध्यम से यथाशीघ्र समान नागरिक संहिता के कानून को पालन किया जाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन अधिष्ठाता छात्र कल्याण व आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के समन्वयक डॉ संजय कुमार माहेश्वरी ने किया। उन्होंने फ्रांस की प्रगतिशीलता का उदाहरण देते हुए कहा कि नेपोलियन बोनापार्ट ने 1805 में समान नागरिकता संहिता की शुरुआत की थी जो आज यूरोपीय विशेषकर फ्रांसीसी समाज के प्रगति का आधार बना। उन्होंने आग्रह किया कि समरसता के आधार पर समान नागरिक संहिता को लागू किया जाना चाहिए। इस अवसर पर बोलते हुए राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष विनय थपलियाल ने समान नागरिक संहिता में संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के योगदान का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता का यह तकाजा है कि समाज के किसी भी समूह के मन की भ्रांति को सरकार दूर करें। उन्होंने इसके लिए संवाद और समरसता का आग्रह किया और यह कहा कि इस समान नागरिक संहिता से भारत राष्ट्र के सेकुलर ढांचे के साथ किसी भी प्रकार की कोई छेड़छाड़ या क्षति नहीं होगी।वाणिज्य विभाग के प्राध्यापक डॉ तेजवीर सिंह तोमर ने कानूनों को लागू करने की बात पर बल दिया उन्होंने कहा कि भारत में कई कानून पूर्व से ही मौजूद है परंतु आवश्यकता इस बात की है कि उन कानूनों को सही रूप में लागू किया जाए। वाणिज्य संकाय की ही डॉ सुगंधा वर्मा ने महात्मा गांधी के योगदान का स्मरण करते हुए हैं कहा कि अफ्रीका में उन्होंने अप्रवासी भारतीयों की लड़ाई को समान नागरिक संहिता के कानून के माध्यम से ही लड़ा था। इस अवसर पर समाज शास्त्र विभाग की प्राध्यापिका डॉ सुषमा नयाल ने भी समाज में विविधता के संरक्षण को बनाए रखने पर बल दिया इस अवसर पर प्रो. जगदीश चन्द्र आर्य, डाॅ. विजय शर्मा, रिंकल गोयल, रिचा मिनोचा, डाॅ. आशा शर्मा, डाॅ. लता शर्मा, डाॅ. शिव कुमार चौहान, डाॅ. मोना शर्मा, डाॅ. रेणू सिंह, डाॅ. पूर्णिमा सुन्दरियाल, विनीत सक्सेना, राजकुमार, संजीत कुमार आदि सहित काॅलेज के अनेक शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी उपस्थित थे।

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