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मुस्लिम वोट नहीं काट पा रही थी भावना, मोहम्मद शहजाद की चर्चाओं के बीच बसपा से कराई गई मौलाना की एंट्री..

आखिर कौन कर रहा बसपा का "टूल" की तरह इस्तेमाल, बाहरी मौलाना का हरिद्वार के मुसलमानों से क्या सरोकार..?

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पंच👊नामा-ब्यूरो
सुल्तान, हरिद्वार: काफी इंतजार के बाद हरिद्वार लोकसभा सीट पर बिना सोचे-समझे “जनता कैबिनेट पार्टी” की नेता भावना पांडे को उम्मीदवार बनाने वाली बसपा चौथे दिन ही बैकफुट पर आ गई।

फाइल फोटो

बसपा ने होली के दिन नाटककीय घटनाक्रम के तहत भावना पांडे की जगह मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट से विधायक रह चुके मौलाना जमील कासमी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।

फाइल फोटो

इधर बसपा ने जमील कासमी को उम्मीदवार बनाया, उधर भावना पंडित तुरंत भाजपा प्रत्याशी त्रिवेंद्र रावत के पक्ष में जाकर खड़ी हो गई। हरिद्वार लोकसभा सीट पर सोमवार को सामने आए इन दोनों घटनाक्रमों से पर्दे के पीछे की तस्वीर सामने आ गई।

फाइल फोटो: भावना पांडे

इन चर्चाओं पर भी मुहर लग गई कि भावना पांडे मुस्लिम वोट काटने में कामयाब नहीं हो पा रही थी। इसीलिए पड़ोसी जिले से एक मौलाना को लाकर मैदान में उतारा गया है। प्रत्याशी की अदला-बदली का यह कारण तो स्पष्ट हो गया। साथ ही यह भी साफ हो गया कि इस चुनाव में भी बसपा को “टूल” की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

फाइल फोटो

सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक खुद को दलित और मुसलमानों की हितेषी बताने वाली बसपा की कमान आखिर किसने थामी हुई है…?? हरिद्वार लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण देखा जाए तो यह वही लोग हैं, जिनको मुस्लिम वोट एकजुट होने पर अपनी हार का डर सता रहा है। यही वजह है कि जीत का गणित साधने के लिए मौलाना को आयात करके हरिद्वार लाना पड़ा।
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कई दिन से थी शहजाद को प्रत्याशी बनाने की चर्चाएं…….

फाइल फोटो: विधायक मौ. शहजाद

हरिद्वार लोकसभा सीट पर बसपा ने आनन-फानन में भावना पांडे को टिकट तो दे दिया था। लेकिन राजनीतिक पंडितों को यह अटपटा लग रहा था। इसलिए सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी थी कि बसपा में मोहम्मद शहजाद को प्रत्याशी बनाया जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि इस संबंध में बसपा समेत एक अन्य दल मुख्य रणनीतिकारों ने लक्सर विधायक मोहम्मद शहजाद से संपर्क भी साधा, लेकिन शहजाद ने साफ तौर पर इनकार कर दिया। दूसरा विकल्प ढूंढने पर जिले से कोई ऐसा चेहरा नजर नहीं आया, जिस पर अपना राजनीतिक हित साधने के लिए दांव लगाया जा सके।

फाइल फोटो

तब पड़ोसी जिले मुजफ्फरनगर जाकर यह तलाश खत्म हुई और एक बाहरी मौलाना को प्रत्याशी बनाना पड़ा। लेकिन यहां पर भी सवाल यह है कि हरिद्वार लोकसभा सीट के मुसलमान का किसी बाहरी मौलाना से क्या सरोकार है। हरिद्वार लोकसभा सीट के मुसलमान तो दूर की बात है, बसपा का कैडर वोट कहा जाने वाला दलित समुदाय किसी बाहरी व्यक्ति को वोट क्यों देगा। कुल मिलाकर पर्दे के पीछे से कोई कितना भी दांव-पेंच चले, लेकिन यह जो पब्लिक है यह सब जानती है।

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