हरिद्वार

“रुड़की में ‘हुसैन सबके हैं’ थीम पर 10 दिवसीय लंगर का समापन, रोज़-ए-आशूरा पर 2000 से अधिक लोगों को परोसे गए मटर पनीर, चावल और बादाम शेक..

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पंच👊नामा
रुड़की: पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद स.अ.व. के नवासे हज़रत इमाम हुसैन अ.स. और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम उल हराम के मौके पर अंजुमन गुलामाने मुस्तफा सोसाइटी (रुड़की चैप्टर) द्वारा 10 दिवसीय नूरानी लंगर का आयोजन किया गया। यह लंगर 1 मुहर्रम से लेकर 10 मुहर्रम (रोज़-ए-आशूरा) तक चला, जिसका समापन रविवार को भावभीने माहौल में मटर पनीर, चावल और ठंडे बादाम शेक के वितरण के साथ हुआ।लंगर की थीम ‘हुसैन सबके हैं’ रखी गई, जो इस बात को दर्शाती है कि इमाम हुसैन अ.स. की कुर्बानी किसी एक मज़हब की नहीं, बल्कि तमाम इंसानियत के लिए थी।
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कर्बला: कुर्बानी का ऐसा सबक, जो रहनुमा बन गया….10 मुहर्रम 61 हिजरी (680 ईस्वी) को कर्बला में जब हज़रत इमाम हुसैन अ.स. ने यज़ीद की बैत को ठुकराया, तो उन्हें उनके परिवार और साथियों सहित शहीद कर दिया गया। इस ऐतिहासिक त्रासदी में शहीद होने वालों में उनके भाई हज़रत अब्बास, जवान बेटा अली अकबर, भतीजा क़ासिम, और छह महीने का मासूम बेटा अली असग़र भी शामिल थे। शहादत से पहले इमाम हुसैन अ.स. और उनके खेमे को तीन दिन तक प्यासा रखा गया, लेकिन उन्होंने अन्याय के आगे सर झुकाने से इंकार कर दिया। यही वजह है कि आज भी कहा जाता है “इस्लाम ज़िंदा होता है, हर कर्बला के बाद।”
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दस दिन, दस जायके- इंसानियत की ख़िदमत के साथ….संस्था के सचिव कुंवर शाहिद ने जानकारी दी कि यह लंगर रामपुर रोड (उमर एन्क्लेव के बाहर) पर लगाया गया, जहाँ हर दिन अलग-अलग शुद्ध शाकाहारी व्यंजन परोसे गए। प्रमुख व्यंजनों में दाल मखनी, छोले, राजमा, आलू टमाटर, मटर पनीर, और 10 वें दिन विशेष रूप से ठंडा बादाम शेक शामिल रहा।रोज़ाना सैकड़ों लोगों ने इस लंगर का लाभ उठाया। आशूरा के दिन यह संख्या बढ़कर 2000 से अधिक पहुंच गई। आयोजन पूरी तरह सार्वजनिक था, जिसमें हर धर्म, वर्ग और जाति के लोग सम्मिलित हुए।
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ग़मगीन माहौल में बांटा गया लंगर ए हुसैन…..सोसाइटी के अध्यक्ष शाहिद नूर ने बताया कि लंगर के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की गई कि इमाम हुसैन अ.स. का पैग़ाम आज भी ज़िंदा है — और वह हर उस इंसान के लिए है जो ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहता है। उन्होंने कहा,.“कर्बला एक तारीख़ नहीं, बल्कि ऐसा सबक है जो हर दौर में इंसाफ़ और इंसानियत की मिसाल बन जाता है। जब-जब ज़ुल्म बढ़ेगा, हुसैनी किरदार उससे लड़ने की हिम्मत देगा। ”कार्यक्रम संयोजक आसिफ अली उर्फ हैदर ने कहा कि मुहर्रम केवल मातम का महीना नहीं, बल्कि वफ़ादारी, सब्र और हक़ की गवाही का महीना है। “लोग रोज़ा रखते हैं, शबीले लगाते हैं, और लंगर बांटकर यह जताते हैं कि इमाम हुसैन की मोहब्बत आज भी दिलों में ज़िंदा है।”
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सांझा प्रयास: हर तबके ने मिलकर निभाई सेवा….इस पूरे आयोजन को सफल बनाने में समाज के विभिन्न तबकों से जुड़े लोगों की भागीदारी रही सेवा में सक्रिय नाम रहे: नसीम अहमद टायर वाले, काकू साबरी, सलमान, फरजान, दानिश, साकिब शहज़ाद, आदिल गौर, अकिल गौर, गौरव बंसल, रामपाल सिंह, परवेज़ आलम, मुनव्वर अली साबरी, रेहमान खान, सुहैल खान और दर्जनों अन्य स्थानीय सेवाभावी शामिल रहे।
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सिर्फ मज़हबी आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश भी….इस 10 दिवसीय आयोजन ने यह साबित किया कि हुसैनी लंगर महज़ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द, सामाजिक सेवा और जन-जुड़ाव का ज़रिया भी बन सकता है। कई राहगीर, स्थानीय दुकानदार और आस-पास के लोग हर दिन वहां पहुंचते रहे और स्वयंसेवकों ने पूरे समर्पण के साथ सेवा की। कहीं भी भेदभाव नहीं दिखा — यही ‘हुसैन सबके हैं’ थीम का असल मक़सद था।
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हक़ और इंसानियत की राह में जिंदा है कर्बला का पैग़ाम….आज जब दुनिया ज़ुल्म, अन्याय और विभाजन की ओर बढ़ रही है, तब कर्बला की यादें और इमाम हुसैन अ.स. का पैग़ाम पहले से ज़्यादा प्रासंगिक हो गया है। रुड़की में आयोजित यह 10 दिवसीय लंगर न सिर्फ धार्मिक संवेदनाओं का प्रतीक था, बल्कि यह एक जीवंत सामाजिक संदेश भी था — कि इंसानियत, बराबरी और न्याय के लिए लड़ना ही असली इबादत है। और यही सच्ची याद है उस शहादत की, जिसने दुनिया को सिखाया… “सर कट सकता है, लेकिन झुकाया नहीं जा सकता। “हुसैन वाक़ई सबके हैं।
(लेखक कुँवर शाहिद)

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