पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: जेब में नहीं दाने, चले सरकार बनाने। यह कहावत कांग्रेस के कई प्रत्याशियों पर सही साबित हो रही है। इन प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने का कीड़ा तो काट गया, लेकिन जरूरी खर्च करने में भी जान निकल रही है। ग्रामीण क्षेत्र की सीटों पर चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के कुछ प्रत्याशी तो कार्यकर्ताओं पर ही बोझ बने हुए हैं। अपने दिहाड़ी मजदूरी छोड़कर प्रचार में निकले कार्यकर्ताओं और समर्थकों को जेब खर्च तो क्या दें, बल्कि उम्मीद रहती है कि कार्यकर्ता गाड़ी में तेल भी अपने जेब से भरवाएं। कुछ हॉट सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी स्थानीय कार्यकर्ताओं पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। उन्होंने आय-व्यय का पूरा जिम्मा बाहरी समर्थकों को सौंपा हुआ है। फिर उम्मीद ही स्थानीय कार्यकर्ताओं से है कि वह चुनाव जिताएंगे। जबकि इन परिस्थितियों में चुनाव जिताना तो दूर की बात है, कार्यकर्ताओं के लिए दिन काटने भारी पड़ रहे हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि सारे प्रत्याशी इतनी कंजूसी बरत रहे हैं। शहर और देहात की कुछ सीटों पर कुछ प्रत्याशी कम से कम अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का ख्याल रख रहे हैं। लेकिन कुछ ग्रामीण व घाड़ क्षेत्र में प्रत्याशियों के कार्यालयों पर चाय-पानी के भी लाले पड़ रहे हैं। यह बात अलग है कि समर्पित और कर्मठ कार्यकर्ता प्रत्याशियों के सामने अभी कुछ खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है। मगर इन परिस्थितियों में कार्यकर्त्ता भला प्रत्याशियों के लिए कैसे माहौल बनाएंगे। इससे साफ है कि कंजूस प्रत्याशियों का विधायक बनना एक सपना ही बनकर रह जाएगा।