पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: चुनावी दंगल सज गया है और प्रचार हर दिन अपने चरम की तरफ बढ़ रहा है। अगले चंद दिनों में यह तय हो जाएगा कि कौन प्रत्याशी किसको पटखनी देगा और कौन किसको चित करेगा। प्रदेश में सरकार बनाने का संकल्प लेकर चुनावी समर में उतरी कांग्रेस के प्रत्याशी केवल अपने समर्थकों और चंद नेताओं के बूते प्रचार करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी इस चुनाव में भी दूर होती नजर नहीं आ रही है। प्रत्याशियों को मजबूत करने में संगठन दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। हरीश रावत गुट और प्रीतम गुट का बंटवारा कांग्रेस प्रत्याशियों का बंटाधार करता दिख रहा है। सबसे बड़ा उदाहरण हरिद्वार ग्रामीण सीट पर देखने को मिल रहा है। यहां कांग्रेस प्रत्याशी अनुपमा रावत के कार्यक्रमों में अभी तक एक बार भी ग्रामीण जिलाध्यक्ष धर्मपाल सिंह को नहीं देखा गया है। कमोबेश यही हाल शहरी क्षेत्र में है। यहां चंद चेहरों को छोड़कर संगठन और सर्वे सर्वा सिरे से गायब हैं। हरिद्वार सीट पर सतपाल ब्रह्मचारी के साथ उनके समर्थक और महापौर के पति अशोक शर्मा ही प्रमुख तौर पर नजर आ रहे हैं। रानीपुर में संगठन के बगैर राजवीर सिंह की हालत और भी पतली है। ज्वालापुर सीट पर रवि बहादुर भी अपने करीबी और समर्थकों के सहारे चुनाव मैदान में डींगें भर रहे हैं। जिनके कंधों पर संगठन का जिम्मा है, वह अभी तक अपने घरों से निकलने को तैयार नहीं हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस में चुनाव के समय घर बैठने के लिए पदाधिकारी बनाए जाते हैं।
यह बात सही है कि संगठन हरीश रावत और प्रीतम सिंह गुट में बंटा हुआ है। संगठन में अधिकांश जगहों पर प्रीतम गुटका दबदबा है। गुटबाजी अपनी जगह है और अपने नेता के प्रति वफादार होना भी अलग बात है। लेकिन चुनाव के मौसम में भी अगर पार्टी के बड़े नेता संगठन को एक नहीं कर पाए तो सरकार बनाने का दावा किस मुंह से करते हैं। ऐसे में यह बात समझ से परे है कि बिना संगठन लावारिस स्थिति में कांग्रेस प्रत्याशियों के नया आखिर कैसे पार लगेगी। दूसरा सवाल यह भी है कि आखिर कांग्रेस पदाधिकारियों के मन में क्या खिचड़ी पक रही है।