धर्म-कर्महरिद्वार

कलियर में “मस्त मलंगों की अलग दुनिया, सूफियों से इश्क ही जिंदगी का मकसद…

धमाल (करतब) करते मस्तमलंग…

(पिरान कलियर:-उर्स-स्पेशल-12)

प्रवेज़ आलम:-रुड़की/पिरान कलियर!

पंच👊नामा- पिरान कलियर! महाकुंभ में साधु संतों के विभिन्न रूप तो आपने देखें ही होंगे कुछ ऐसा ही नज़ारा पिरान कलियर के उस संगम उर्स का है जहां मस्तमलंगो के हैरतनाक रूप आपको देखने को मिलेंगे।

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रुड़की से 7 किलो मीटर की दूरी पर बसी, सूफ़ी संतो नगरी पिरान कलियर में मस्तमलंगो की एक अलग ही दुनिया बसती है। ये मस्तमलंग दुनियावी रीतिरिवाज से बिल्कुल अलग होते है, ना परिवार ना कोई ख्वाहिश और ना ही कोई चाहत, बस अपनी ही धुन और अपनी ही दुनिया में खोय ये मस्तमलंग दुनियां भर में बसे है।

दुनियांभर में मज़ारो पर इन मस्तमलंगो का डेरा होता है बस यही वो स्थान है जहां उनका घरबार और सब कुछ है। पिरान कलियर भी उन स्थानों में एक प्रसिद्ध स्थान है। पिरान कलियर में चार धुनें रजिस्ट्रड है चारो धुनों पर सैकड़ो मस्तमलंग रहते है जो ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ को अंजाम देते है।

इन दिनों पिरान कलियर स्थित विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक का सालाना उर्स अंतिम चरण में है। उर्स में शिकरत करने आए दूर दराज से मस्तमलंग कलियर स्थित डेरो पर आशिकी में लीन है। रफाई धुनें के गद्दीनशीन मासूम बाबा ने बताया कि उनको मजार शरीफ में आराम फरमा सूफ़ीओं से सच्ची मुहब्बत है, और उन्ही के इश्क में वह दुनियां भुलाए है।

मासूम बाबा बताते है कि धुनों पर मौजूद मस्तमलंगो की ग़िज़ा चिलम है हालांकि ये सेहत के लिए हानिकारक होती है बावजूद इसके वो इसे अपनी ग़िज़ा मानते है, वो बताते है की यदि तीन दिन उन्हें खाना ना दिए जाए तो उनपर कोई फर्क नही पड़ेगा, बस चिलम के सहारे वो अपनी भक्ति में लीन रहते है।

पिरान कलियर को सुफिसन्तो की नगरी कहा जाता है क्योंकि यहां विश्व प्रसिद्ध सूफी हज़रत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक की दरगाह है। दरगाह से अक़ीदत और सच्ची मुहब्बत रखने वाले लोग यहां आते है और अपनी बिड़गी बनाते है। कहते है दरबार में सच्चे दिल से जो मांगा जाता वो उसे हासिल होता है।

दरबार-ए- साबिर पाक का प्रत्येक वर्ष सालाना उर्स मनाया जाता है जो इन दिनों चल रहा है। उर्स में दूर दराज से अकीदतमंद दरबार में हाजरी लगाते है औऱ फैजियाब होकर लौटते है। इन्हीं अकीदतमंदों में एक फौज मस्तमलंगो की भी होती है। जिन्हें दरबार के अलावा और कोई धुन नही होती। ये मस्तमलंग अपने परिवारो को छोड़कर दरगाहों की शरण में रहते है और वही ख़िदमत को अंजाम देते है।

मस्तमलंगो की दुनिया बेहद दिलचस्प होती है, इन्हें देखकर हर कोई दांतो तले उंगली दबाने पर मजबूर हो जाता है। उर्स के दौरान ये मस्तमलंग धमाल (करतब) करते है जिसमे ये अपने ऊपर तलवार, हंटर आदि चीजो से वार करते हुए दिखाई देते है इनका मानना है कि ये सब दरबार की सच्ची मुहब्बत का प्रमाण है, जिससे इनको कोई नुकसान नही पहुचता। वही अगर बात करे इनके जीवन यापन की तो बेहद सादा जीवन जीना और लोगो की मदद करना ही इनका मक़सद है।
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चार धुनें और उनके खलीफा…

पिरान कलियर में चार धुनें रजिस्टर्ड है जिनमें जलाली चौक के मोहर्रम अली, बांवा चौक के सरवर बाबा, रफाई चौक के शमशेर अली और मदार चौक के वसीम शाह खलीफा है, इन धुनों पर उर्स के दौरान लंगर का सिलसिला लगातार जारी रहता है,

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