धर्म-कर्महरिद्वार

750 साल बाद भी साबिर पाक के “सब्र की गवाही दे रहा “गूलर का पेड़….

सब्र से मिला "साबिर का लक़ब, हर साल लाखों अकीदतमंदों की भरती है झोली..

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: 12 साल गूलर के फल खाकर अलाउद्दीन साबिर ने लुटाया था लंगर….
पिरान कलियर उर्स:-स्पेशल-5

प्रवेज़ आलम:-रुड़की/पिरान कलियर!

आस्था की नगरी पिरान कलियर आने वाले जायरीनों के लिए हमेशा अकीदत का केन्द्र रहा दरगाह परिसर में खड़ा गूलर का पेड़, खास अहमियत रखता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार हजरत मख्दूम अलाउददीन अली अहमद साबिर पाक ने गूलर के पेड़ के नीचे खड़े होकर ही बरसों खुदा की इबादत की थी। भोजन के नाम पर हजरत साबिर साहब गुलर ही खाते थे।

गुलर की अहमियत को दर्शाती एक दास्तान सज्जादानशीन शाह अली एजाज कुद्दुसी साबरी ने बताई है, उन्होंने बताया कि एक बार हजरत साबिर साहब के पीरो मुर्शिद बाबा फरीद गंज शंकर के पाक पटटन स्थित आवास से जो अब पाकिस्तान में है, से कव्वाल आये थे। पहले उन्होंने हजरत निजामुददीन औलिया देहलवी की खानकाह में कलाम पेश किये। कव्वालों के कलाम महबूबे इलाही हजरत निजामुददीन औलिया को इस कदर पसंद आये कि उन्होंने कव्वालों को बेशकीमती हीरे मोती दिये। कव्वाल बेहद प्रभावित हुए। उन्हें उम्मीद जगी कि कलियर से उन्हें और ज्यादा कीमती तोहफे हासिल होगे। दिल में उम्मीद की शमां रोशन किये कव्वाल कलियर पहुंचे और हजरत साबिर साहब के रूबरू अपने कलाम पेश किये तो साबिर साहब ने खुश होकर कव्वालों को गूलर के पेड़ से गूलर तोडकर बतौर इनाम दिये। कव्वालों को गूलर जैसी मामूली चीज मिलने से गहरी मायूसी हुई।

वापसी में जब कव्वाल पाक पटटन पहुंचे तो बाबा फरीद ने कव्वालों से पूछा कि मेरे साबिर ने क्या दिया है तो कव्वालों ने उपेक्षित भाव से उनके सामने गूलर की पोटली खोलकर रख दी। गूलर देखते ही बाबा फरीद वज्द में आ गये और उन्होंने बड़ी अकीदत से गूलरों को उठाकर आंखों से लगा लिया और हजरत मखदूम अलाउददीन अली अहमद साबिर की हम्दो सना पेश की। इस माजरे का देखकर कव्वालों को सख्त हैरत हुई तब उन्हें गूलर की अहमियत का अहसास हुआ। आज भी दरगाह साबिर साहब में आने वाले जायरीन बतौर तबर्रूक गूलर ले जाना नहीं भूलते। मान्यता है कि जिनके यहां सन्तान नहीं होती या लाइलाज बीमारी का शिकार होते हैं उन्हें गूलर का सेवन करने से सन्तान प्राप्त हुई और बीमारों को बीमारियों से छुटकारा हासिल हुआ।

दरगाह परिसर में जो गूलर मुख्य दरवाजे से गुजरने पर बायें हाथ पर स्थित है उस पर संगमरमर का पत्थर लगा है जिस पर हर वक्त चिराग जले रहते हैं। अकीदतमंद अपने दुख दर्द की दास्तान एक अर्जी में लिखकर उस गूलर पर टांग देते हैं। उन्हें यकीन होता है कि साबिर साहब उनकी अर्जी में लिखे दुख दर्द दूर करेंगे।

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