मजलिस ए हुसैन में नम हुई आंखें, सोगवारों ने किया मातम..
ज्वालापुर में अंजुमन फरोग ए अज़ा के झंडे तले इमामबाड़ा में जुटे शिया समुदाय के लोग, कैसे लहूलुहान हुए युवा, देखें वीडियो

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: अंजुमन फ़रोग़ ए अज़ा के अध्यक्ष हैदर नकवी के नेतृत्व में शिया समुदाय के लोगों ने इमामबाड़ा अहबाब नगर ज्वालापुर में इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मजलिस ए हुसैन व मातम किया गया सज्जाद असगर नकवी ने मजलिस का संचालन करते हुए बताया कि कर्बला में मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन उनके घर वालों एवं साथियों की शहादत को याद करते हुए हर साल 10 मोहर्रम पर मातम किया जाता है। सज्जाद असगर नकवी ने कहा यजीद द्वारा कर्बला में इमाम हुसैन को उनके साथी एवं परिवार सहित 3 दिन तक भूखा प्यासा रखकर मोहर्रम की 10 तारीख को शहीद कर दिया गया, इमाम हुसैन किसी जंग के इरादे से नही बल्कि अपने परिवार की औरतें और बच्चों को साथ लेकर यात्रा पर निकले थे, जिसमें इमाम हुसैन के साथ 6 महीने का बच्चा अली असगर भी मौजूद था।
लेकिन यज़ीद शासक द्वारा इमाम हुसैन को इराक़ के एक शहर कर्बला में रोक दिया गया, यज़ीद एक बहुत ही क्रूर शासक था जो हर बुराई को अच्छा और हर अच्छाई को बुराई बनाना चाहता था। यज़ीद का कहना था जो में कहता हूं वो मानो वरना मरने के लिए तैय्यार हो जाओ, इमाम हुसैन ने ज़ालिम के सामने सिर झुकाने से अच्छा सिर कटाना बेहतर समझा। इमाम हुसैन की यात्रा में बड़े और बच्चे सब मिलाकर 72 लोग मौजूद थे।
इमाम हुसैन ने जब यज़ीद की बात मानने से इनकार किया तो यजीद के लाखों के लश्कर ने इमाम हुसैन के भरे घर को शहीद कर दिया। यजीद बहुत ही क्रूर शासक था उसने 6 माह के बच्चे अली असग़र के गले पर तीर चलवाने में भी कोई शर्म नही की, इमाम हुसैन और उनके परिवार एवं साथियों को शहीद करने के बाद उनकी घर की महिलाओं एवं बच्चों को बंदी बनाकर बाजारों में नंगे सर ले जाकर उन पर पत्थर बरसाए व अन्य क्रूर यातनाएं दी ।
अंजुमन फ़रोग़ ए अज़ा के अध्यक्ष हैदर नकवी ने कहा कि 10 मोहर्रम को शाम के समय इमाम हुसैन और उनके साथियों को शहीद करने के बाद यजीद की फौज द्वारा इमाम हुसैन के ख़ेमों को आग के हवाले कर दिया और जो उनका सामान था वह लूट लिया, इमाम हुसैन की शहादत का ग़म 1400 सालों से लगातार मनाया जाता रहा है, हर साल यह गम ऐसा लगता है जैसे कुछ समय पहले ही कर्बला का वाक्या हुआ हो और इमाम हुसैन को शहीद किया गया हो। इसी वजह से शिया समुदाय इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मोहर्रम में मातम करके शोक व्यक्त करते हैं और इमाम हुसैन की याद में मातम मनाते है। इमाम हुसैन की शहादत का एक सबसे अहम मकसद यह था कि वह इंसानियत को बचाना चाहते थे और यज़ीद इंसानियत का सबसे बड़ा दुश्मन था, इमाम हुसैन ने अपनी शहादत किसी एक वर्ग या किसी एक समुदाय के लिए नहीं दी थी बल्कि इंसानियत को बचाने के लिए अपनी शहादत दी और ज़ालिम के सामने सिर न झुकने का संदेश भी दिया। उन्होंने बताया हर साल इमाम हुसैन का गम मनाने वालों में बढ़ोतरी हो रही है, इमाम हुसैन एक ऐसी शख्सियत है जिनसे हर धर्म और हर समुदाय के लोग मोहब्बत करते हैं और इमाम हुसैन का पैगाम भी इंसानियत को बचाना और मोहब्बत को बांटना है।
मातम करने वालों में फिरोज हैदर जैदी, एहतेशाम अब्बास जैदी, अली हसन अनवार हुसैन, ज़हूर हसन, गौहर जाफरी, शजर, ऐजाज़ नक़वी, कबीर, आफताब हुसैन, हुसैन हैदर, अंसार हुसैन, इक़्तेदार नक़वी, शोएब नक़वी, दिलशाद नक़वी, अली रज़ा, बिलाल ज़ैदी, अरशद, सालिम हुसैन, रविश नक़वी, मोहम्मद बिलाल नक़वी, मुसव्विर अब्बास नक़वी, हिलाल, बासित आदी लोग मौजूद रहे।