
पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पहल पर शुरू हुई “ड्रग्स फ्री देवभूमि” अभियान और “ऑपरेशन लगाम” के तहत पूरे प्रदेश में पुलिस अभियान चला कर कार्रवाई कर रही है। लेकिन हरिद्वार में इन दोनों अभियानों की सीमाएं तय हैं। ड्रग्स फ्री देवभूमि अभियान के तहत स्मैक, गांजा और चरस जैसे नशे पर कार्रवाई जारी है। लेकिन अवैध शराब का धंधा शायद इस अभियान की जद से बाहर है।
शहर के गली-मोहल्लों की तो बात अलग है, तीर्थनगरी में मांस-मदिरा के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र में जिस तरीके से अवैध शराब का धंधा गंगा घाटों से लेकर होटल-धर्मशालाओं तक फल-फूल रहा है, उसके तो यही मायने निकलते हैं।
यही बात ऑपरेशन लगाम पर भी लागू होती है। इस अभियान के तहत दूसरे राज्यों से आकर शराब, हुक्का पीने, स्टंट करने वालों पर कार्रवाई निरंतर चल रही है, लेकिन झोपड़ी में चलने वाले कसीनो और रोडवेज बस अड्डे में आधी रात चलने वाले चकरी के जुए तक कानून के लंबे हाथ नहीं पहुंच पा रहे हैं।
ऐसे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के महत्वकांक्षी “ड्रग्स फ्री देवभूमि अभियान” और “ऑपरेशन लगाम” पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं।
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जनता को पता, पुलिस को खबर क्यों नहीं..?हरिद्वार शहर के रिहायशी हिस्सों के अलावा तीर्थ क्षेत्र में अवैध शराब का धंधा खुलेआम फल-फूल रहा है। आबकारी कानून की धज्जियां उड़ाते हुए झुग्गियों से लेकर गली-कूचों तक देशी शराब खुलेआम बिक रही है। ड्रग्स फ्री देवभूमि अभियान इन पर खामोश है, जैसे ये उसका हिस्सा ही न हो।
बस अड्डे के पास आधी रात को चकरी वाला जुआ बेरोकटोक चल रहा है। हाईवे से सटी झुग्गी झोपड़ी में कसीनोनुमा जुआ अड्डे संचालित हो रहे हैं। हैरत की बात यह है कि इन दोनों धंधों के बारे में आम जन को पूरा पता है। लेकिन ऐसा कैसे संभव है कि पुलिस को खबर नहीं।
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हरकी पैड़ी पर नशा मुक्ति की शपथ, घाटों पर धंधा…..ड्रग्स फ्री देवभूमि अभियान के तहत इन दिनों पुलिस महकमा जागरूकता पखवाड़ा भी मना रहा है। जिसके तहत नुक्कड़ नाटक, कार्यशाला, बाइक रैली जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए। चार दिन पहले हरकी पैड़ी पर नशा मुक्ति की शपथ भी दिलाई गई।
जिसमें पुलिस के साथ-साथ कई जनप्रतिनिधि शामिल हुए। मजेदार बात यह है कि जिस समय शपथ दिलाई जा रही थी, आसपास के इलाके में उस समय भी शराब माफिया के गुर्गे स्कूटी और थैलों में शराब डालकर होम डिलीवरी में व्यस्त थे।
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प्रशासनिक चुप्पी से उठे सवाल……सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को इन सब गतिविधियों की जानकारी है, तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही…? यदि जानकारी में नहीं है तो यह सक्रियता पर और भी बड़ा सवाल है।
सवाल यह है कि क्या अवैध शराब “ड्रग्स” की परिभाषा में नहीं आती, या फिर उसके खिलाफ कार्रवाई न करने का कोई मौन निर्देश है..? सवाल ये भी है “ड्रग्स फ्री देवभूमि और ऑपरेशन लगाम” जैसे अभियानों की सफलता क्या सिर्फ प्रेस नोट और फोटो खिंचवाने तक ही सीमित है..?