हरिद्वार

“साबिर पाक के लंगर में बेबसी: भूखे बच्चों के लिए लंगर ले जा रही बूढ़ी मांओं से छीना खाना..

पिरान कलियर में मानवता को शर्मसार करती तस्वीरें, लंगर के नियमों की आड़ में मजबूर महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार..

पंच👊नामा
पिरान कलियर: सदियों से इंसानियत और सब्र की मिसाल पिरान कलियर स्थित हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक (रह.) के दरगाह का लंगर सिर्फ भूख मिटाने का जरिया नहीं, बल्कि इंसानी बराबरी, मदद और मोहब्बत का प्रतीक है। यह वही पाक वली का दरबार है जिसने खुद भूखे रहकर दूसरों को खिलाने की मिसाल पेश की। यही वजह है कि यहां लंगर की रिवायत आज भी बरकरार है — दो वक्त गरीब, मजबूर और बीमारों के लिए खाना तकसीम होता है। लेकिन हाल ही में सामने आई एक घटना ने इस पाक परंपरा को धूमिल कर दिया है और मानवीय संवेदना को झकझोर कर रख दिया है।
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बिलखती बूढ़ी माएं और बर्बरता की तस्वीरें…..शनिवार को दरगाह के लंगर खाने के बाहर दो बुजुर्ग महिलाएं अपने बीमार बच्चों के लिए कुछ खाना ले जाती हुईं दिखीं। उन्होंने खुद तो वहीं बैठकर लंगर खाया, लेकिन अपने बीमार बच्चों के लिए थोड़ा सा खाना साथ ले जाना चाहा। यह कोई लालच नहीं, बल्कि ममता थी — एक मां की ममता। लेकिन इसी इंसानी जज़्बे पर दरगाह कर्मियों और वहां तैनात पीआरडी जवानों ने बर्बरता दिखाते हुए, डांट-फटकार के साथ उनका खाना छीन लिया। दोनों अम्माएं लंगर खाने के बाहर फूट-फूट कर रोती रहीं, हाथों में खाली डिब्बे और आंखों में बेबसी का सैलाब लिए।
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लंगर का उद्देश्य, और उसका अपमान…..दरगाह कर्मियों का कहना है कि दफ्तर से बाहर लंगर ले जाना मना है। लेकिन सवाल यह है कि जब भूख मजबूरी बन जाए, जब मां अपने बीमार बच्चों के लिए दो निवाले खाना ले जाना चाहे, तो क्या उस पर इतनी बर्बता दिखाना इंसानियत है..? हज़रत साबिर पाक (रह.) ने तो 12 साल तक खुद खाना नहीं खाया, लेकिन दूसरों को खिलाते रहे। उन्हीं की निस्बत से जुड़ा ये ये लंगर, क्या अब महज़ एक सिस्टम बन कर रह गया है जिसमें भावना की कोई जगह नहीं…?
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जायरीन और स्थानीय लोग भी हुए आहत…..इस घटना के बाद वहां मौजूद कई जायरीन और स्थानीय लोगों की आंखें भर आईं। कुछ ने कहा कि अगर मजबूरी में कोई थोड़ा खाना साथ ले भी जाता है तो उसे इस तरह सरेआम जलील करना कहां की इंसानियत है..? ऐसे अमानवीय व्यवहार ने दरगाह की परंपरा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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सवाल यही है…क्या लंगर अब सिर्फ एक “नियम” बन गया है और उसका मकसद भुला दिया गया है..? क्या वो दरगाह जो सब्र और सेवा की मिसाल है, अब कागजी कायदे-कानूनों और लचर व्यसवस्था में इंसानियत को कुचल रही है..? यह घटना सिर्फ दो बूढ़ी औरतों के साथ नहीं घटी, यह हमारी सोच और संवेदना के साथ घटी है। उम्मीद है कि दरगाह प्रशासन इस पर गंभीरता से विचार करेगा और उस दरगाह की रूह को फिर से जिंदा करेगा, जहां कोई भूखा न लौटे — न दिल से, न पेट से।

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