धर्म-कर्मनज़रियाहरिद्वार

जरूरी नहीं कि लंबी उम्र मिले तभी मनुष्य बने महान, ईश्वर छोटी उम्र देकर भी लेता है बड़े काम..

हरिद्वार की नन्ही अभिप्रेरिता कैसे बन गई परोपकार की मिसाल, एक पिता की कलम से पढ़ें, बिटिया के देवी होने की कहानी..

इस खबर को सुनिए

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: सभी धर्मग्रंथों में मनुष्य को ईश्वर की सबसे अनमोल कृति कहा गया है। यानि मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है। ईश्वर ने हमें मनुष्य क्यों बनाया, मानव जीवन का उद्देश्य क्या है, इस सवाल का जवाब खोजने पर पता चलता है कि परमेश्वर को प्राप्त करना यानि मोक्ष प्राप्त करना ही मानव जीवन का लक्ष्य है। धर्मग्रंथ यह भी बताते हैं कि परोपकार से बढ़कर परमेश्वर को प्राप्त करने का कोई और रास्ता नहीं हो सकता है। क्या परोपकार करने, मोक्ष प्राप्त करने या जीवन को महान बनाने के लिए मनुष्य के लिए लंबी आयु का होना जरूरी है….?

फाइल फोटो

छोटी सी उम्र में नेत्रदान कर परोपकार के शीर्ष पर चमक रही हरिद्वार की नन्हीं सी बिटिया अभिप्रेरिता प्रसाद की जीवनी पर नजर डालें तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। ईश्वर चाहे तो किसी इंसान को बहुत छोटी जिंदगी देकर भी उससे बड़ा काम ले सकता है।

फाइल फोटो

मानसिक दिव्यांगों के लिए समर्पित “अभिप्रेरणा फाउंडेशन” के संस्थापक डा. दीपेश चंद्र प्रसाद की 11 साल की बिटिया अभिप्रेरिता प्रसाद उर्फ मिष्ठी अब इस दुनिया में नहीं है, पर उनकी आंखों से दो नेत्रहीन लोगों की दुनिया में उजाला भर गया है।
——————————–
“जन्म से पहले किया नाम को साकार…….

फाइल फोटो

डा. दीपेश चंद्र प्रसाद बताते हैं कि 26 जून 2007 को एक नाम की संस्था की आधारशिला रखी गई और 03 दिसंबर 2009 को इसी संस्था ने मानसिक दिव्यांगजन के पुनर्वास के लिए एक स्कूल की स्थापना भी की। लेकिन जिस नाम की संस्था का उदभव 4 साल पूर्व हुआ। उस नाम की कन्या का जन्म 24 अक्टूबर 2011 को धनतेरस के शुभ मुहूर्त में हुआ, जिसको सभी अभिप्रेरिता (मिष्ठी) के नाम से जानते है।

फाइल फोटो

अभिप्रेरिता जन्म से ही संघर्षमय जिंदगी जी रही थी, लेकिन उसके पास एक ऐसा लक्ष्य था, जो दूसरे की जिंदगी को बदल देने का उद्देश्य प्रकाशित कर रहा था। साथ ही इसके प्रभाव से हरिद्वार शहर मे मानसिक दिव्यांगजन बच्चों का स्कूल संचालित हो रहा था, जिसमें सैकड़ों बच्चों को लाभ मिल रहा था। पांच साल की होने के बाद से आज तक अभिप्रेरिता के तेज़ प्रभाव से हरिद्वार के कई राजकीय विद्यालय मे अभिप्रेरणा फाउंडेशन ने कार्य किया, जिससे हजारों बच्चें लाभान्वित हो रहें हैं।

फाइल फोटो

21 जून 2023 तीसरे गुप्त-नवरात्रि के सुबह 4 बजे ब्रह्ममुहूर्त में अभिप्रेरिता प्रसाद की ह्रदय गति रुक जाने के कारण मां दुर्गा के पास चली गई। लेकिन जाते-जाते दो नेत्रहीन दिव्यांगजन को अपनी आंखें दान करके उनके जीवन को प्रकाश प्रदान कर गई। ऐसी थी हमारी अभिप्रेरिता (मिष्ठी)…! जिसकी जिंदगी लंबी नहीं, पर बड़ी थी।

धनतेरस के दिन आई और तीसरे गुप्त-नवरात्रि के दिन चले जाना, वो एक देवी का ही रूप हो सकती हैं। 11 साल की उम्र में जाते-जाते किसी दो अनजान लोगों को आंखें दे जाना, कोई महादानी ही हो सकता हैं। बचपन से 11 साल की उम्र तक दिव्यांगजन और ज़रूरतमंद बच्चों के हित में कार्य को एक दिशा देना, यह कोई देवी रूपी मां ही हो सकती हैं।
“!! ऐसी देवी को शत-शत प्रणाम !!

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Translate »
error: Content is protected !!