पंच👊🏻नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हरिद्वार की अदालत ने राशन डीलर, ग्राम प्रधान और खाद्य आपूर्ति निरीक्षक पर राशन की कालाबाजारी का आरोप लगाकर दायर की गई निगरानी को निरस्त कर दिया। मामला मिर्जापुर मुस्तफाबाद गांव का है। प्रतिवादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान अहमद एडवोकेट ने दलील पेश की।
गांव निवासी मुर्तजा पुत्र अशरफ ने मुकदमा दर्ज कराने के लिए पहले अवर न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया था। प्रार्थना पत्र निरस्त होने केे बाद अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में निगरानी दायर की थी। जिसमें बताया था कि उसके गांव का निवासी मौहम्मद शाहिद पुत्र सईद उचित दर राशन विक्रेता है।
26 सितंबर 2019 को पूर्ति निरीक्षक विकास खण्ड, रूड़की ने ग्राम मिर्जापुर मुस्तफाबाद में एपीएल के 139 राशन कार्ड, ए०ए०वाई०/अंत्योदेय के 25 राशनकार्ड व एनएफएसए/खाद्यय सुरक्षा के 149 राशन कार्ड में 1036 यूनिट के आधार पर राशन सामग्री आवंटित की।
राशन विक्रेता मौ. शाहिद ने उचित दर राशन सामग्री का उठान व विवरण माह जनवरी 2020 तक किया। आरोप लगाया था कि माह जनवरी 2020 के बाद राशन डीलर शाहिद, ग्राम प्रधान तहमीना, खाद्य आपूर्ति निरीक्षक हिमांशु ने मिलकर अलग-अलग योजना के अन्तर्गत बने राशन कार्डों को फर्जी तरीके से दूसरी योजना के कार्डों में दर्शाकर सरकारी राशन की कालाबाजारी की है।
जिसकी शिकायत भी उसने जिले और शासन के अधिकारियों से की। पुलिस ने भी मुकदमा दर्ज करने से इन्कार कर दिया। मुर्तजा ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से धारा 420, 467, 468, 471 भा०दं०सं० के तहत मुकदमा दर्ज करने की अपील की। निचली अदालत से प्रार्थना पत्र निरस्त होने के बाद उसकी निगरानी दाखिल की गई।
राशन डीलर, ग्राम प्रधान व खाद्य आपूर्ति निरीक्षक की ओर से उनके अधिवक्ता सज्जाद अहमद एडवोकेट और सलमान अहमद एडवोकेट ने अपनी दलील पेश करते हुए अदालत को बताया कि अवर न्यायालय ने सम्बन्धित थाने से विस्तृत आख्या मांगी थी, जिसका अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि उपनिरीक्षक ने निगरानीकर्ता व विपक्षीगण के बयान अंकित किए थे।
जिसमें राशन के लेन-देन के सम्बन्ध में निगरानीकर्ता व विपक्षी मौहम्मद शाहिद के बीच मनमुटाव पाया गया। साथ ही उपनिरीक्षक ने अपनी आख्या में यह स्पष्ट अंकित किया गया है कि इस प्रकरण के सम्बन्ध में जिला खाद्य पूर्ति कार्यालय, रूड़की के माध्यम से जांच कराया जाना आवश्यक है। साथ ही जो दस्तावेज पत्रावली पर सूची के रूप में दाखिल किये गये हैं, वह सभी फोटो प्रतियां हैं।
उनसे भी यह साबित नहीं होता है कि किस प्रकार धोखाधडी की गई है। प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंजूश्री जुयाल की अदालत ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद निगरानी निरस्त कर दी।