पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: हरिद्वार के सामाजिक व आरटीआई कार्यकर्ता हिमांशु सरीन की ओर से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना में जवाब देते हुए संस्कृति मंत्रालय ने बताया है कि “गांधी के राष्ट्रपिता और महात्मा होने का कोई प्रमाण भारत सरकार के पास उपलब्ध नही है।” अतः गांधी को राष्ट्रपिता कहा जा सकता है या नही यह संदेहात्मक है। हालांकि सूचना के जवाब में गुजरात उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका के एक निर्णय (19 फरवरी 2016) का हवाला देते हुए यह जरूर बताया गया है कि गांधी जी को रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने एक संदेश में गुरुदेव कहा था व उनकी आत्मकथा लिखते समय वर्ष 1915 में गांधी जी को टैगोर ने महात्मा की उपाधि प्रदान की गई थी। जिसके बाद उस वाद में गुजरात हाईकोर्ट ने गांधी जी को महात्मा कहे जाने की बात को बरकरार रखा है।
लेकिन गांधी जी के राष्ट्रपिता होने का कोई प्रामाणिक डेटा उपलब्ध नहीं है। जिसके बाद हिमांशु सरीन का कहना है कि कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपुत्र हो सकता है, लेकिन राष्ट्रपिता नही। राष्ट्रपिता जैसा कोई व्यक्ति नही होता। क्योंकि गांधी जी के पहले भी भारत देश का अस्तित्व था। गांधी जी को राष्ट्रपिता कहना मात्र एक राजनैतिक विचारधारा है, इसका यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं। बताया कि मांगे गए अन्य बिंदुओं के लिए संबंधित विभाग को संबंधित धाराओं के अंतर्गत पत्र प्रेषित कर सूचना उपलब्ध करवाने की जानकारी नही दी गयी है जिसके लिए वह उच्च स्तरीय अपील करेंगे। सरीन के अनुसार ऐसे कई विषय है जिनपर अभी खुलासा होना अभी बाकी है, जल्द ही सार्वजनिक हितों के लिए बड़े स्तर पर पत्राचार किया जाएगा। बताया कि स्वामी विवेकानंद जनहित ट्रस्ट की ओर से मनोज निषाद संस्था का पत्राचार संबंधित कार्य देख रहें है।