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उत्तराखंड में उत्पात मचा रहे थे उत्तर प्रदेश के डेढ़ लाख बंदर, 42 हजार बंदरों की करनी पड़ी नसबंदी..

चोरी छिपे उत्तराखंड में छोड़े जा रहे हैं यूपी के बंदर, नसबंदी के बावजूद नहीं थम रहा उत्पात, अब उत्तर प्रदेश के अधिकारियों से होगी बात..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: उत्तराखंड के सबसे बड़े जिले यानी हरिद्वार में उत्तर प्रदेश के बंधुओं ने आतंक मचाया हुआ है। साल 2015-16 में उत्तर प्रदेश के ऐसे डेढ़ लाख बंदरों की जनगणना के बाद हरिद्वार का वन विभाग अब तक 42 हजार उत्पाती बंदरों की नसबंदी भी कर चुका है।

फाइल फोटो

लेकिन बंदरों का उत्पात थम नहीं रहा है। इसलिए हरिद्वार के अधिकारी इस बारे में जल्द ही आसपास के उत्तर प्रदेश के जिलों के अधिकारियों से बात करेंगे ताकि इस पर लगाम लगाई जा सके।
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नजीबाबाद हाईवे पर बंदरों का कब्जा….
हरिद्वार-नजीबाबाद-मुरादाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग के श्यामपुर- चिड़ियापुर के करीब 12 से 14 किमी हिस्से पर हर समय इनका कब्जा रहता है। इनका आतंक इस कदर है कि यह आने-जाने वाले वाहनों चालकों और सवारियों पर हमला करने से नहीं चूकते। खाने-पीने का सामान छीन लेना तो इनके लिए मामूली बात है।

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बंदरों के आतंक से निजात दिलाने और इनकी बढ़ती संख्या पर प्रभावी रोक लगाने को वन विभाग ने अभियान चलाकर इनमें से 42 हजार बंदरों की नसबंदी की, इससे बंदरों की कुल संख्या में दस प्रतिशत की कमी आंकी गई। पर, इससे इनके आतंक में कोई कमी नहीं आई।
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“चोरी छुपे छोड़े जा रहे हैं बंदर…
इसका मुख्य कारण उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिले बिजनौर के नजीबाबाद से हरिद्वार के चिड़ियापुर सहित लालढांग और श्यामपुर में चोरी-छिपे उत्पाती बंदरों को लगातार छोड़ा जाना है। यह बंदर श्यामपुर क्षेत्र से होते हुए हरिद्वार शहर तक पहुंच रहे हैं। इन उत्पाती बंदरों के कारण उत्तरी हरिद्वार और कनखल के अलावा मध्य हरिद्वार में मीना एन्क्लेव, राजलोक विहार, योगी विहार, माडल कालोनी विकास कालोनी, खन्ना नगर व मध्य निर्माण कराया।

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हरिद्वार में स्थानीय निवासियों को मजबूरन अपने-अपने घरों को लोहे के एंगिल और जाल से घेरना पड़ा है। क्योंकि बंदरों की टोली जब-तब उनके घरों में घुसकर पूरा सामान तहस-नहस कर देती है। मामले की शिकायत उच्चाधिकारियों से की गई है। इस मामले को उत्तर प्रदेश के जिम्मेदारों के सामने भी रखने की तैयारी है।
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“नसबंदी के साथ-साथ टैगिंग भी…
वन विभाग नसबंदी के बाद बंदरों की पहचान को उनकी टैगिंग भी कर रहा है। डा. अमित ध्यानी के अनुसार नसबंदी करने के बाद बंदरों पर टैग भी लगाया जाता है। बंदरों के  आतंक को कम करने के लिए वर्ष 2016 में चिड़ियापुर रेंज में स्थित ट्रांजिट रेस्क्यू सेंटर में बंदर बाड़े और चिकित्सालय का निर्माण कराया गया है।

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हरिद्वार के डीएफओ मयंक शेखर झा का कहना है कि रेंज अधिकारियों को पत्र लिख निगरानी बढाए जाने के साथ-साथ इस पर प्रभावी नियंत्रण को भी कहा गया है। आवश्यकता हुई तो सीमा से लगे हुए उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के डीएफओ से भी इस संदर्भ में वार्ता की जाएगी।

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