
पंच👊नामा
पिरान कलियर: निकाय चुनाव का अखाड़ा पूरी तरह सज चुका है। हर गली, हर नुक्कड़ पर चुनावी चर्चा गर्म है, और दावेदारों ने अपनी-अपनी रणनीतियों का पिटारा खोल दिया है। यह चुनाव केवल वोटों की जंग नहीं, बल्कि राजनीतिक शक्ति और जनाधार का इम्तिहान भी है। कलियर नगर पंचायत सीट पर मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है। हर दिन चुनावी समीकरण नई करवट ले रहे हैं।इस बार बसपा ने पूर्व प्रधान सलीम की पत्नी समीना को मैदान में उतारा है। पिछली बार सलीम प्रधान को चंद वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। हार का दर्द और शिकस्त की कसक शायद किसी सबक में तब्दील होनी चाहिए थी, लेकिन बीते छह वर्षों में सलीम प्रधान ने अपनी राजनीतिक ज़मीन को ऐसा बंजर छोड़ा कि उसमें न जज़्बे की फसल लहराई और न ही विपक्ष की भूमिका निभाते हुए जनता के लिए कोई सियासी आवाज़ बुलंद की।
————————————अब, जब चुनावी बिगुल बज चुका है, सलीम प्रधान एक बार फिर मैदान में हैं, लेकिन इस बार वह अपनी पत्नी के नाम पर। हालांकि, पर्दे के पीछे वही हैं, और चुनावी रथ का सारथी बनने का जिम्मा उन्होंने खुद लिया है। दिलचस्प बात यह है कि सलीम प्रधान लक्सर विधायक हाजी मोहम्मद शहजाद के बहनोई हैं। विधायक शहजाद और उनके परिवार ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। समीना के समर्थन में उनकी मौजूदगी सलीम प्रधान के लिए वोट खींचने का काम कर रही है।
————————————–क्या विधायक की ताकत से टिके रहेंगे सलीम प्रधान…?
लेकिन यहीं पर सवाल खड़ा होता है—क्या यह चुनाव केवल विधायक शहजाद के दम पर लड़ा जा रहा है..? जनता के ज़ेहन में यह सवाल भी उमड़-घुमड़ रहा है कि कलियर की जनता के मुद्दों को उठाने के लिए क्या सलीम प्रधान विधायक की बैसाखी पर ही खड़े रहेंगे..?यह पहली बार नहीं है जब हाजी मोहम्मद शहजाद ने कलियर में सियासी परचम लहराने की कोशिश की हो। कलियर विधानसभा से दो बार शिकस्त का सामना करने के बाद ही उन्होंने लक्सर का रुख किया था और वहां से विधायक बनने में कामयाब रहे। अब बात यह है कि क्या शहजाद विधायक की सियासी ताकत सलीम प्रधान को जीत की दहलीज तक पहुंचा पाएगी..? सलीम प्रधान की खुद की कोई प्रशासनिक पकड़ न होने के कारण यह सवाल और गहराता है।
जनता को एक ऐसा नेता चाहिए जो उनकी समस्याओं को प्रशासन के सामने दमदार तरीके से उठाए। सलीम प्रधान की यह कमी उनकी चुनावी नाव को कमजोर करती है। जनता में यह भी चर्चा है कि जो वोट उन्हें मिल रहे हैं, वे असल में विधायक शहजाद के नाम पर हैं, न कि सलीम प्रधान की लोकप्रियता की बदौलत। ऐसे में क्या यह नेतृत्व अगले पांच साल जनता की उम्मीदों पर खरा उतर सकेगा, या फिर हर बार समस्याओं के समाधान के लिए विधायक को ही पुकारना पड़ेगा..?
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नतीजे से पहले का सवाल…चुनाव के इस अखाड़े में हर प्रत्याशी अपनी ताकत झोंक रहा है, लेकिन सलीम प्रधान के लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह खुद को एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित कर पाएंगे, या फिर यह चुनाव भी केवल रिश्तों और परिवारिक सियासत का एक और उदाहरण बनकर रह जाएगा।