पंच👊नामा-ब्यूरो
सुल्तान, हरिद्वार: ढाई दशक में मुस्लिम फंड के रास्ते अब्दुल रज्जाक के फर्श से अर्श पर पहुंचने और लालच में अंधा होकर फर्श पर औंधे मुंह गिरने की कहानी किसी फिल्म के जैसी है, पर हक़ीक़त है। साथ ही दूसरों के लिए बड़ा सबक भी है।
1990 के दशक में महज 350 रुपये प्रति महीने के मेहनताने पर इमामत यानि मस्जिद में नमाज पढ़ाने वाला रज्जाक कुछ सालों में ही सैकड़ों करोड़ का मालिक बन बैठा। दूसरों की रकम पर बैंक से हर महीने लाखों रुपये का ब्याज मिलने के बावजूद उसकी हवस की खोपड़ी नहीं भरी।
लालच में न सिर्फ उसने खातेदारों की अमानत में खयानत की, बल्कि धंधे से जुटाई गई संपत्तियां भी गंवा दी। जेल में शुक्रवार की पूरी रात उसने करवट बदल-बदल कर काटी।
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यतीम-बेसहारों का हक भी डकारा……
मुस्लिम धर्म में ब्याज लेना और देना हराम है, इसलिए हजारों मुस्लिम लोग अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई मुस्लिम फंड में जमा करते। घर बैठे पैसे जमा कराने की सहूलियत ने 20 फीसद गैर मुस्लिमों को भी मुस्लिम फंड से जुड़ने के लिए मजबूर किया। मुस्लिम फंड की थीम कुछ यूं थी कि रोजाना इकट्ठा होने वाली रकम बैंक में जमा की जाए और उससे हासिल होने वाली ब्याज की रकम से स्टाफ व अन्य खर्च निकाली जाए।
बाकी रकम गरीब, यतीम, बेसहारों व जरूरतमंदों पर खर्च की जाए। इस रकम को गरीब-यतीम-मिस्कीम और बेसहारों का ही हक माना जाता है। पुलिस को पता चला है कि अब्दुल रज्जाक को कुछ समय पहले तक बैंकों से महीने में 50 लाख रुपये तक की रकम ब्याज के रूप में मिलती रही।
लेकिन पूरा ज्वालापुर गवाह है कि इस रकम का पांच फीसद हिस्सा भी उसने जरूरतमंदों पर खर्च नहीं किया। बल्कि रकम से संपत्तियां खरीदकर अपना साम्राज्य बढ़ाता रहा। इतना होने के बावजूद उसकी हवस की खोपड़ी नहीं भरी।
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लाख से करोड़, करोड़ से सैकड़ों करोड़…..
उसके जानकार भी मानते हैं कि बुरी बला कहा जाने वाला लालच रज्जाक के अंदर कूट-कूटकर भरा था। लाखों को करोड़ और करोड़ों को हजारों करोड़ में बदलने की कभी न पूरी होने वाली नाजायज ख्वाहिश ने रज्जाक को जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया। कभी मदरसे में पढ़ाने तो कभी मस्जिद में नमाज पढ़ाकर चंद रुपये कमाने वाले रज्जाक ने सैकड़ों करोड़ का मालिक बनने के बावजूद किसी की बेटी की शादी तो किसी की पक्की छत का सपना तोड़ डाला। उसके साथ जेल गए दोनों साथियों ने भी अमीर बनने के लालच में अपनी जमा पूंजी लालच की भेंट चढ़ा दी।
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दूसरों के लिए हराम, तो खुद के लिए हलाल कैसे….
हरिद्वार: एक आम मुसलमान को हराम-हलाल की पहचान होती है, फिर रज्जाक तो हाफिज था। लोगों की जुबान पर आम चर्चा यह है कि जब ब्याज दूसरों के लिए हराम है तो रज्जाक के लिए हलाल कैसे हो गया। यह मजहबी बहस का विषय है कि आलिम होने के बावजूद रज्जाक ब्याज के दलदल में गोते लगा रहा था। जबकि उसके आस-पास मौलानाओं और उलेमाओं का घेरा था।
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क्या पीड़ितों को मिल सकेगी गाढ़ी कमाई…..
हरिद्वार: रज्जाक के गिरफ्तार होने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पीड़ितों को उनकी मेहनत की गाढ़ी कमाई वापस मिल पाएगी। हालांकि, इसका जवाब शहर में पिछले दिनों सामने आ चुके किट्टी व कमेटी के दर्जनों घोटालों के पीड़ित ज्यादा बेहतर बता सकते हैं। अलबत्ता, फिलहाल पुलिस यह दावा कर रही है कि इसकी भरपाई कोर्ट के माध्यम से की जाएगी।
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अब परिजनों, रिश्तेदारों की बारी..
हालांकि, अभी तक रज्जाक की सभी संपत्तियां बिकने की बात सामने आ रही है, फिर भी पुलिस उसके परिजनों व रिश्तेदारों की कुंडली खंगाल रही है। संपत्तियां अगर रिश्तेदारों व परिजनों की आमदनी से ज्यादा निकली तो इसे रज्जाक की संपत्ति माना जाएगा और बेनामी संपत्ति के तौर पर जब्त करते हुए पीड़ितों के जख्मों पर कुछ न कुछ मरहम लगाया जा सकता है।