प्रवेज़ आलम:- पिरान कलियर: आस्था के बड़े मरकज़ का वो उत्सव अब समाप्ति की ओर है। अक़ीदत का मेला बिछुड़ता जा रहा है, तमाम रसुमात के बाद रविउल-अवल्ल की 17 तारीख को कुल और महफ़िल की अंतिम परंपरा के बाद सूफ़ियों का ये उत्सव परंपरागत समाप्त हो जाएगा।

अंतिम दौर में नम आंखों के साथ अकीदतमंद अपनी-अपनी मंजिलों की ओर रवाना होंगे।
बाबा फरीद गंजे शकर के लाल हज़रत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक की दरगाह पर लगने वाला सालाना उर्स/मेला लगभग-लगभग समाप्ति की ओर पहुँच चुका है। वैसे तो उर्स में ग़ुस्ल शरीफ की अंतिम रस्म के बाद साबिर पाक के दादा पीर हज़रत बाबा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रह. का क़ुल शरीफ़ होने पर उर्स सम्पन्न हो जाता है, लेकिन पुरानी परंपरा के मुताबिक़ रविउल-अव्वल की 17 तारीख जिसे सत्रहवीं कहा जाता है, जिसमे हज़रत साबिर पाक के वालिदे मोहतरम हजरत अब्दुल रहीम रह. का कुल और महफ़िल के बाद साबिर पाक का उर्स/मेला सम्पूर्ण तरीके से सम्पन्न हो जाता है।
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सत्रहवीं की अजीम महफ़िल….
दरबार शरीफ के परिसर में होने वाली सत्रहवीं की महफ़िल बेहद खास होती है, इस महफ़िल में दूर-दराज से सूफ़ियाना कव्वाल तशरीफ़ लाते है और अपनी हाजरी कलाम के जरिये पेश करते है। बताते है कि सत्रहवीं की महफ़िल बुलबुल-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित कव्वाल हबीब पेंटर ने शुरू की थी। उस दौर में दरगाह के सज्जादानशीन की इजाज़त पर हबीब पेंटर ने सत्रहवीं को लंगर, कुल और महफ़िल शुरू की थी, जिसके बाद से आज तक ये परंपरा चली आरही है। हबीब पेंटर के बाद उनके बाद उनके बेटे अनीस पेंटर और अब उनके पोते फरीद पेंटर सत्रहवीं की महफ़िल में अपनी हाजरी जरूर पेश करते है, इनके साथ ही अन्य मशहूर कव्वाल भी अपने सूफ़ियाना कलाम से महफ़िल को रौशन करते है। जिसे सुनने के लिए दूर-दराज से अकीदतमंद तशरीफ़ लाते है।