“सिंघम और “दबंग बनने के चक्कर में मात खा रहे नए दारोगा और सिपाही..
बेसिक पुलिसिंग छोड़ स्टाइल मेंटेन करने पर रहता है फोकस..
: पुलिसिंग का पहला नियम जामा तलाशी लेना भूल जाते हैं पुलिसकर्मी…
पंच 👊 नामा
सुल्तान:- हरिद्वार: हिरासत में लिए गए बदमाश के हाथों हरियाणा पुलिस के जवान की हत्या फरीदाबाद क्राइम ब्रांच की नासमझी का परिणाम है। साथ यह दुःखद घटना उत्तराखंड के नए पुलिसकर्मियों के लिए भी बड़ा सबक है। दरअसल, “सिंघम और “दबंग जैसी फिल्मों के आने के बाद ज्यादातर नए पुलिसकर्मियों पर फिल्मी स्टाइल हावी हो चला है। अधिकांश नए दारोगा व सिपाहियों का फोकस बेसिक पुलिसिंग से ज़्यादा “मूछों और कपड़ों की बनावट और अपना स्टाइल मेंटेन करने पर रहता है। किसी की चौक चौराहे पर सीपीयू से लेकर यातायात पुलिस और थाने-कोतवाली के पुलिसकर्मी बिना डंडे के हाथ में मोबाइल लिए देखे जा सकते हैं। हरियाणा क्राइम ब्रांच के पुलिसकर्मियों ने अगर पुलिसिंग का पहला नियम जामा तलाशी को अपनाया होता तो शायद एक जवान की हत्या ना होती।
पुलिस की ट्रेनिंग में यह सिखाया जाता है कि अपराधी को पकड़ते ही उसकी जामा तलाशी तुरंत ली जाए। ताकि कोई घातक हथियार व नुकसान पहुंचाने वाली चीज उसके पास ना रहे। जिससे वह खुद को नुकसान ना पहुंचा दे, या फिर किसी पर हमला ना कर दे।
हरियाणा पुलिस की क्राइम ब्रांच ने यह पहला नियम ही भूल कर बहुत बड़ी गलती कर दी। जिसकी कीमत एक सिपाही को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
यह पहली घटना नहीं है कि पुलिस को अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा है, अमूमन पुलिस के कस्टडी से मुलजिम फरार होने या पुलिस पर हमला करने की घटनाएं नए पुलिसकर्मियों की नासमझी और लड़कपन के कारण सामने आ रही हैं। ऐसी घटनाओं से पुलिस की ट्रेनिंग पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्योंकि नए पुलिसकर्मी लंबी मूछे, काला चश्मा और पीछे पिस्टल या रिवाल्वर लगाकड अमूमन खुद को “सिंघम या दबंग” की भूमिका में समझते हैं और खुद ही मान लेते हैं कि सामने वाला अपराधी उन्हें देख कर ही डर जाएगा। पुलिस की यही गलतफहमी अपराधियों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। रिटायर्ड पुलिस उपाधीक्षक संजय बिश्नोई बताते हैं कि हमारे टाइम में थानाध्यक्ष सरकारी रिवाल्वर के अलावा राइफल, दोनाली बंदूक और डंडा वगैरा सब लेकर चलता था। भीड़ से बचने के लिए दोनाली बंदूक के छर्रे कंट्रोल करने में सहायक होते हैं। अब सिपाही इन सब से दूर रहता है।