तो “नौकरशाह और “खादीधारियों के गठजोड़ ने ले ली “डीआईजी की कुर्सी….
: राज्य की पहली महिला डीआईजी रेंज रही नीरू गर्ग
: अचानक हटाने से हवा में तैरने लगे कई सवाल
पंच 👊 नामा…✍️
हरिद्वार: राज्य की पहली महिला डीआईजी रेंज रही आईपीएस नीरू गर्ग को अचानक हटा देने से कई सवाल हवा में तैर रहे है। बड़ी चर्चा यह है कि सिडकुल घोटाले की जांच की आंच कई बड़े चेहरों पर आना तय थी, इसलिए डीआईजी की विदाई कर दी गई। नौकरशाह और राजनेताओं के गठजोड़ का ही यह नतीजा निकलकर आया है, जो बेहद ही डरे हुए थे। इससे यह भी पता चलता है कि उत्तराखंड में अफसरशाही किस कदर हावी है। सूत्रों की मानें तो उधमसिंहनगर व दून जिले से फाइलें मांगे जाने के बावजूद नहीं भेजी जा रही थी।
एक साल से पहले थाना-कोतवाली प्रभारियों तक को न हटाये जाने का प्रावधान है, लेकिन उत्तराखंड में अफसरों नेताओं की आंखों में खटक रहीं नीरू गर्ग को 10 माह में ही चलता कर दिया गया है। उत्तराखंड सिडकुल घोटाले में देहरादून और ऊधमसिंहनगर जिलों की लेटलतीफी कम नहीं हुई है। चार साल बाद भी ये जिले 90 जांच फाइलों को दबाए बैठे हैं। उन्हें कई बार अल्टीमेटम भी दिया जा चुका है। कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया, लेकिन कोई वाजिब जवाब नहीं दिया गया। वर्ष 2012 से 2017 तक सिडकुल के कामों में अनियमितता सामने आई थी। इसकी जांच के लिए वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एसआईटी का गठन किया था। डीआईजी गढ़वाल रेंज को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। शुरूआती पड़ताल में पूरे प्रदेश में कुल 304 मामले अनियमितता के सामने आए। अलग-अलग जिलों से संबंधित इन मामलों की जांच चल रही है।
जांच में पता चला था कि सिडकुल के अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर मन माफिक लोगों को काम बांटा था। यही नहीं ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को भी यहां पर कई काम दे दिए गए थे। जिन कामों को स्थानीय कंपनियों से कराया जाना था उन्हें उत्तर प्रदेश की कंपनियों में बांट दिया गया।
इस तरह जांच करते हुए सभी जिलों ने 304 फाइलों में से 214 फाइलों का निपटारा कर लिया था। अब बची फाइलें केवल देहरादून और ऊधमसिंहनगर से ही संबंधित हैं। नवंबर 2020 से अब तक इन फाइलों के लिए जिले के अधिकारी तमाम बहाने बना रहे हैं। पिछले दिनों उन्हें 30 जून तक का समय दिया गया था, लेकिन जांच पूरी नहीं हो सकी।