हरिद्वार

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को नकारा, विरोध में हरिद्वार से उठी थी पुरज़ोर आवाज..

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी की उपस्थिति में संतों व शिक्षाविदों ने रखी थी बेबाक राय, मुखर होकर जताया था विरोध..

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पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार समलैंगिक विवाह को मूल अधिकार मानने से साफ इन्कार कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर धर्मनगरी से इसके खिलाफ पुरजोर आवाज उठी थी।

फाइल फोटो

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी की उपस्थिति मेंं पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में आयोजित कार्यशाला में हरिद्वार के संतों और शिक्षाविदों ने समलैंगिक विवाह के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई थी, बल्कि इसे सनानत व भारतीय संस्कृति के विपरीत मानते हुए रद्द करने की मांग भी पुरजोर तरीके से की थी।

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श्रीमहंत रविंद्र पुरी की पहल पर एसएमजेएन पीजी कॉलेज के प्राचार्य डा. सुनील कुमार बत्रा ने उच्च शिक्षण मंच के बैनर तले इस गोष्ठी का संयोजन किया था। जिसमें श्रीमहंत रविंद्र पुरी, महंत रामरतन गिरि सहित कई संतों और उत्तराखंड संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री, पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डा. महावीर अग्रवाल, गुरुकुल कांगड़ी समविवि के कुलपति प्रो. सोमदेव शतांशु, एसएमजेएन पीजी कॉलेज के प्रार्चार्य प्रो. डाक्टर सुनील कुमार बत्रा, राजकीय कॉलेज हरिद्वार के प्राचार्य डा. दिनेश कुमार शुक्ल, रामानंद इंस्टीटयूट के निदेशक वैभव शर्मा ने बेबाकी से अपनी राय रखी।

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एसएमजेएन पीजी कॉलेज के छात्र कल्याण अधिष्ठाता डा. संजय माहेश्वरी के संचालन में आयोजित गोष्ठी में एचईसी ग्रुप ऑफ इंस्टीटयूशन के चेयरमैन संदीप चौधरी, डीएवी सेंटनरी पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य डा. मनोज कपिल आदि शिक्षाविद शामिल हुए थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट व अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने देश की संस्कृति के अनुरूप बताते हुए कहा कि सनातन और भारतीय संस्कृति में समलैंगिक विवाह का कोई स्थान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने देश की संस्कृति के अनुरूप फैसला दिया है। वहीं, डा. सुनील कुमार बत्रा का कहना है कि इस फैसले से देश के युवाओं को संस्कारविहीन होने से बचाया जा सकेगा। यह फैसला कई अन्य देशों में भी नजीर बनेगा।
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“क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने…

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अदालत ने साफ कहा कि शादी के अधिकार को मूल अधिकार नहीं माना जा सकता। यदि दो लोग शादी करना चाहें तो यह उनका निजी मामला है और वे संबंध में आ सकते हैं। इसके लिए कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए कानून बनाना सरकार का काम है। हम संसद को इसके लिए आदेश नहीं दे सकते। हां, इसके लिए एक कमेटी बनाकर विचार जरूर करना चाहिए कि कैसे इस वर्ग को अधिकार मिलें।

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चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी के भी पास अपना साथी चुनने का अधिकार है। लेकिन हम इसके लिए कानून नहीं बना सकते। सुप्रीम कोर्ट कानून की व्याख्या जरूर कर सकता है। इसके साथ ही सीजेआई ने यह भी कहा कि समलैंगिकता को शहरी एलीट लोगों के बीच की चीज बताना भी गलत है। उन्होंने कहा कि विवाह ऐसी संस्था नहीं है, जो स्थिर हो और उसमें बदलाव न हो सके। जस्टिस कौल ने कहा कि समलैंगिक और विपरीत लिंग वाली शादियों को एक ही तरीके से देखना चाहिए। यह मौका है, जब ऐतिहासिक तौर पर हुए अन्याय और भेदभाव को खत्म करना चाहिए। सरकार को इन लोगों को अधिकार देने पर विचार करना चाहिए।

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