हरिद्वार

“मरना तय है, तो क्यों न शरीर किसी के काम आए” — चरणजीत पाहवा ने की शरीरदान की घोषणा, सपना बना निर्णायक मोड़, धर्मनगरी हरिद्वार से उठी एक प्रेरणा की मिसाल..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और सनातन धर्म के निष्ठावान प्रहरी चरणजीत पाहवा ने एक ऐसा साहसिक और संवेदनशील निर्णय लिया है, जो न केवल समाज के लिए प्रेरणा बनेगा, बल्कि मृत्यु जैसे गंभीर विषय पर एक नई सोच को भी जन्म देगा। सोमवार की सुबह 5 बजे उन्हें एक गहरा सपना आया — जिसमें दो अज्ञात लोगों द्वारा उन्हें मार दिए जाने की घटना देखी गई। इस झकझोर देने वाले अनुभव ने उन्हें आत्ममंथन के लिए विवश किया और उन्होंने उसी क्षण एक बड़ा फैसला लिया: “अगर मृत्यु तय है, तो मेरा शरीर मरने के बाद किसी ज़रूरतमंद के काम आना चाहिए।
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सपना बना चेतना का दर्पण….अपने फेसबुक पोस्ट में पाहवा लिखते हैं कि उन्हें यह नहीं पता कि वह साइकिल से कहां जा रहे थे, लेकिन दो लोगों ने मिलकर उन्हें मार दिया। जैसे ही आंख खुली, उन्होंने पानी पिया और फिर लेट गए। इसी दौरान उन्हें वर्षों पहले की एक मुलाकात याद आई—ऋषिकेश त्रिवेणी घाट पर एक साधु ने कहा था, “तेरी मृत्यु तेरे दुश्मनों के हाथों होगी।” यह भविष्यवाणी उन्हें आज अचानक याद आ गई। लेकिन पाहवा ने भय या निराशा नहीं दिखाई, बल्कि एक जिम्मेदार और समाजोपयोगी कदम उठाने का निर्णय लिया।
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प्रशासन और परिवार से की अपील…..उन्होंने हरिद्वार जिला प्रशासन से आग्रह किया है कि उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर को मेडिकल रिसर्च या ज़रूरतमंद मरीजों के लिए दान किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि वह स्वयं होशो-हवास में रहते हुए यह निर्णय ले रहे हैं और जल्द ही संबंधित फॉर्म भरकर इसे विधिवत दर्ज कराएंगे। अपने परिवारजनों से उन्होंने अपील की है कि उनके इस निर्णय का सम्मान किया जाए। “शरीर को राख करने की बजाय, अगर यह किसी के जीवन की लौ बन जाए — इससे बड़ा पुण्य क्या होगा?————————————–
संघर्षों की कहानी, जीत का इतिहास…..
पाहवा ने अपने 26 वर्षों के संघर्ष का उल्लेख भी किया, जिनमें उन्होंने हरिद्वार की मर्यादा और सनातन धर्म की रक्षा में 26 प्रमुख लड़ाइयां लड़ीं और सभी में विजय पाई।
वे गर्व से लिखते हैं— “शरीर पर दाग हो सकते हैं, लेकिन 26 वर्षों के जीवन में चरित्र पर एक भी दाग नहीं लगने दिया। “उनकी यह पंक्ति आज के समाज में ईमानदारी और निष्ठा की दुर्लभ झलक दिखाती है।
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धर्म के लिए अंतिम सांस तक प्रतिबद्ध…..अपनी पोस्ट के अंत में उन्होंने दृढ़ स्वर में लिखा—
“जब तक जीवित रहूंगा, भगवा लहराता रहेगा। मुझे गर्व है कि मैं सनातनी हूं। ”उनके इस वक्तव्य से यह स्पष्ट होता है कि पाहवा केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं — जो धर्म, सेवा और समाज के लिए अपने अंतिम समय तक समर्पित रहना चाहते हैं।
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समाज से मिल रही है सराहना….उनकी इस घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। लोगों ने इसे न केवल साहसिक निर्णय बताया, बल्कि एक आदर्श कदम भी कहा जो दूसरों को भी मृत्यु के बाद अंगदान या शरीरदान की दिशा में सोचने को प्रेरित करेगा।
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सामाजिक संदेश….चरणजीत पाहवा का यह कदम एक बहुत बड़ा सामाजिक संदेश है—मृत्यु के बाद भी जीवन देना संभव है। यह निर्णय न केवल मृत्यु के भय को पराजित करता है, बल्कि उसे सेवा के माध्यम से अर्थ भी देता है। पाहवा ने यह सिद्ध किया है कि धर्म, विचार और सेवा के पथ पर चलने वाले लोग मृत्यु के बाद भी अमर हो सकते हैं।

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