हरिद्वार

निजी हाथों में सौंपा जाएगा मेडिकल कॉलेज, तो कैसे पढ़ेंगे गरीबों के बच्चे, फैसले के खिलाफ सड़क पर उतरे छात्र..

नगर निगम से जमीन लेकर बना कॉलेज, पीपीपी मोड पर सौंपने को लेकर उठ रहे सवाल, विपक्ष हमलावर, कोर्ट जाएगी कांग्रेस..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: जगजीतपुर मेडिकल कॉलेज को निजी हाथों में सौंपने का विरोध शुरू हो गया है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि नगर निगम की सरकारी जमीन लेकर बनाए गए मेडिकल कॉलेज में प्राइवेट कंपनी मोटी फीस लेकर बड़े घरों के बच्चों को एडमिशन देगी तो गरीबों के बच्चों का भविष्य क्या होगा। इस फैसले के खिलाफ आज मेडिकल के छात्र खुलकर विरोध में उतर आए हैं। उन्होंने तालाबंदी कर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। नगर निगम चुनाव के बीच सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे आदेश को लेकर राजनीति भी गर्म हो गई है।जगजीतपुर स्थित नगर निगम की जमीन पर बनने वाले मेडिकल कॉलेज से हरिद्वार के लोगों को तमाम उम्मीदें थी। स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होने के साथ ही इस मेडिकल कॉलेज में हरिद्वार के लोकल बच्चे नर्सिंग आदि का कोर्स कर अपना भविष्य बना सकते थे। लेकिन मेडिकल कॉलेज को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर सौंपने का निर्णय कई सवाल खड़े करता है। यह कॉलेज, जिसे हरिद्वार और उत्तराखंड के युवाओं के उज्ज्वल भविष्य और गरीबों के इलाज के लिए सरकारी पहल के तहत बनाया जा रहा था। अब निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि इस निर्णय से गरीबों और वंचितों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और भी मुश्किल हो जाएगी।
————————————-कांग्रेस नेता सुभाष त्यागी ने इसे गरीबों और युवाओं के साथ धोखा बताया और सरकार पर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया। पूर्व राज्यमंत्री डॉ. संजय पालीवाल ने इस मेडिकल कॉलेज के लिए मुफ्त दी गई जमीन को जनता के विश्वास का मजाक बताया। पूर्व महापौर अनीता शर्मा ने इस कदम को शर्मनाक और हरिद्वार के हितों के खिलाफ बताया।आम आदमी पार्टी के जिलाध्यक्ष इंजीनियर संजय सैनी ने इस फैसले को अदालत में चुनौती देने की घोषणा की।
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कोर्ट जाएगी कांग्रेस…..

फाइल फोटो: कोर्ट

वरिष्ठ कांग्रेस नेता अरविंद शर्मा एडवोकेट ने इस मुद्दे को नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। उनका मानना है कि यह फैसला “बीस साल बेमिसाल” के नारे के विपरीत है और हरिद्वार के इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज होगा। यह मामला केवल एक मेडिकल कॉलेज के निजीकरण का नहीं है, बल्कि यह सरकारी संस्थानों के भविष्य और गरीबों की मूलभूत सेवाओं की पहुंच का सवाल भी खड़ा करता है। जनता और विपक्ष के तीव्र विरोध को देखते हुए यह देखना होगा कि सरकार अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करती है या नहीं।

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