“रुड़की में एक विधवा की आंखों के सामने उजड़ गया पूरा संसार, नशे ने निगल लिए दो जवान लाल, बूढ़ी मां की गोद रह गई सूनी और बहनों की राखियाँ हुईं वीरान..

पंच👊नामा
रुड़की: सिविल अस्पताल की मोर्चरी के बाहर बिलखती एक वृद्धा — उसकी कांपती हथेलियों में बस एक ही सवाल है: “अब मैं किसके सहारे जियूँ…? ”बुधवार देर शाम खंजरपुर निवासी 27-वर्षीय युवक की मौत ने एक पूरी गृहस्थी की बुनियाद उखाड़ दी। डेढ़ साल पहले ही नशा उसके बड़े भाई को लील चुका था, अब छोटे बेटे की लत ने मां की गोद को ख़ाली और बहनों की राखियों को सूना कर दिया है।
रुड़की खंजरपुर, निवासी इस महिला की कहानी कोई फिल्मी किस्सा नहीं, बल्कि हमारे समाज की एक कड़वी और डरावनी सच्चाई है, जिसमें नशा केवल जिस्म नहीं, रूह तक को निगल जाता है। पांच साल पहले महिला के पति का देहांत हो गया था।
ज़िंदगी जैसे-तैसे कट रही थी। चार संतानें थीं — दो बेटे और दो बेटियाँ। बेटियों की शादी हो चुकी थी और अब घर में सहारा थे सिर्फ दोनों बेटे। मां की उम्मीदों का आसमान इन्हीं दो बेटों से रोशन था, लेकिन नशे की काली परछाई ने पहले बड़े बेटे को निगला, और अब छोटे बेटे को भी मौत की काल मे सुला दिया।
पीड़ित महिला के मुताबिक 27 वर्षीय छोटा बेटा स्मैक और इंजेक्शन की लत का शिकार था। बुधवार की शाम वो घर पर अकेला था और नशे की हालत में बेसुध पड़ा मिला। जब मां घर लौटी तो बेटे को अचेत अवस्था में देखा। तुरंत 108 एम्बुलेंस को बुलाया गया, लेकिन अस्पताल पहुँचते ही डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
आज उस मां की गोद फिर से उजड़ गई — दूसरी बार……
पहली बार जब बड़ा बेटा गया था, तब भी घर की दीवारें खामोश थीं, लेकिन इस बार सन्नाटा चीख रहा था। मोर्चरी के बाहर मां और उसकी बेटियाँ रोती रहीं, बार-बार एक ही बात दोहराते हुए — “नशे ने हमें खत्म कर दिया… अब तो जिंदा लाशें बचे हैं हम। बेटे की मौत ने उस महिला की बची-खुची उम्मीदों को भी रौंद दिया। अब न कोई कंधा बचा जो बुढ़ापे में सहारा बन सके, न कोई आवाज़ जो “मां” कह कर पुकारे। बहनों के हाथों से राखियाँ छूट गईं, और मां की मांग से जीवन की आख़िरी आशा भी मिट गई।
रुड़की और आस-पास के क्षेत्रों में नशे की गिरफ्त दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। स्मैक, चरस, इंजेक्शन और नकली नशे के ज़रिए युवा पीढ़ी बर्बादी की ओर बढ़ रही है। इस एक घटना में सिर्फ एक युवक की जान नहीं गई — एक मां की ममता, एक परिवार का आधार, बहनों की राखियाँ और समाज की आंखों का पानी भी मर गया।
अब सवाल ये नहीं है कि ये क्यों हुआ — सवाल ये है कि हम सब चुप क्यों हैं..? जब तक हर गली में जागरूकता नहीं फैलती, जब तक हर परिवार नशे से लड़ने की ठान नहीं लेता, तब तक हर मोर्चरी के बाहर कोई ना कोई मां यूँ ही बैठी रहेगी — अपनी गोद में लाश लिए। ये दर्दभरा दृश्य देखकर मौजूद लोगों की आंखे भर आईं।