उत्तराखंडहरिद्वार

गाज गिरने का रिकॉर्ड बना चुके विवादित दारोगा की पीछे के रास्ते हरिद्वार में फिर एंट्री..

रसूखदारों के लिए सारे नियम ठेंगे पर, डीजीपी अशोक कुमार के दावों पर लग रहे सवालिया निशान..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: लाइन हाजिर से लेकर निलंबित होने का रेकार्ड बना चुका एक विवादित दारोगा फिर से हरिद्वार में तैनाती पाने में कामयाब रहा। हरिद्वार से ही टिहरी जिले में ट्रांसफर किए गए दारोगा की फिर से वापसी होने पर डीजीपी अशोक कुमार के दावे पर सवाल खड़े हो रहे है।

काल्पनिक फोटो

इसी तरह जिले में कई बार बवाल करा चुका एक विवादित इंस्पेक्टर भी फिर से हरिद्वार वापसी की जगत में लगा है। नियम कायदे नाम की कोई चीज पुलिस महकमे में रह ही नहीं गई है।

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जिसकी राजनैतिक पकड़ मजबूत है, उसके पहाड़ से मैदान में आना कोई बड़ी बात नहीं है।हां, कई कई साल से पहाड़ के जिले में तैनात पुलिस कर्मचारी सेटिंग गेटिंग न होने के चलते नीचे नहीं उतर पा रहे है।

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वर्ष 2004 में अर्द्ध कुंभ मेले के दौरान हुए दंगे में बर्खास्त हुए सिपाही को हाईकोर्ट के आदेश पर फिर से पुलिस महकमे में तैनाती मिली थी। उसके बाद सिपाही रैंकर परीक्षा पास कर दारोगा बन गया लेकिन दारोगा बनने के बाद से अपनी संदिग्ध गतिविधियों के चलते दारोगा या तो निलंबित होता रहा या फिर उसे लाइन भेजा जाता रहा।

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एक थाने में बतौर एसओ तैनात होते हुए भी उसे लाइन हाजिर किया गया। विवादित दारोगा की टिहरी तैनाती हुए अभी एक साल ही हुआ होगा, उसके बाद अब फिर से उसने अपने राजनैतिक आका की बदौलत हरिद्वार जिले में पोस्टिंग पा ली है।

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हैरानी की बात यह है कि दारोगा के लिए कोई नियम कायदे नहीं है। आखिरकार सफेदपोशों के दरबार में दारोगा शीश जो नवाता है। चर्चा है कि दारोगा खनन बाहुल्य थाने पथरी, श्यामपुर या बुग्गावाला का प्रभारी बनने की बात खुलेआम बोल रहा है और उसने उन थाने के स्टॉफ से भी संपर्क करना शुरू कर दिया है।

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दारोगा का कहना है कि अपने राजनैतिक रसूख से वह थाने की कुर्सी पाकर ही रहेगा। देखना दिलचस्प होगा कि दारोगा को एसओ की कुर्सी मिलती है या नहीं, अगर मिलती है तो साफ है कि दारोगा की राजनैतिक हलकों में पकड़ बेहद ही मजबूत है।

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इसी तरह हरिद्वार जिले में तैनात रहकर कई बार विवादों को जन्म दे चुके एक इंस्पेक्टर ने भी हरिद्वार जिले में वापसी के लिए पूरी ताकत लगाई हुई है। बड़ा सवाल यह है कि ऐसे लोग हर बार जिले में वापसी करने में कामयाब हो जाते हैं। जबकि आम पुलिस कर्मी पहाड़ों पर नौकरी का ज्यादा हिस्सा काट रहे हैं। ऐसे में सवाल सीधे तौर पर डीजीपी के दावों पर उठ रहे हैं।

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