ईमानदारी की सजा: अवकाश पर भी ड्यूटी निभाने वाले दरोगा को बिना जांच किया लाइन हाजिर, वायरल वीडियो में सामने आया सच..

पंच👊नामा-ब्यूरो
देहरादून: उप निरीक्षक हर्ष अरोड़ा को बिना किसी पूर्व जांच और सुनवाई के पुलिस लाइन भेजे जाने का मामला सोशल मीडिया पर तूल पकड़ता जा रहा है। झाझरा चौकी के प्रभारी रहे दरोगा हर्ष अरोड़ा के समर्थन में अब आम जनता और पुलिस महकमे के भीतर से भी आवाज उठने लगी है।13 अप्रैल 2025 को जब दरोगा हर्ष अरोड़ा छुट्टी पर थे, तभी उन्हें सूचना मिली कि उनके क्षेत्र में बाढ़ सुरक्षा के लिए लगाई गई तार-बाड़ में कुछ असामाजिक तत्वों ने काट-छांट कर दी है। सूचना मिलते ही वे छुट्टी छोड़कर सीधे मौके पर पहुंच गए, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके।
घटनास्थल पर उन्होंने देखा कि एक वरिष्ठ राजस्व अधिकारी एक पक्ष के व्यक्ति को थप्पड़ मारने की कोशिश कर रहा है। चूंकि मामला पूरी तरह दीवानी प्रकृति का था, इसलिए दरोगा ने गरिमापूर्ण ढंग से बीच-बचाव किया और शांति व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश की।
लेकिन यही कर्तव्यनिष्ठ प्रयास वरिष्ठ अधिकारी के अहंकार को नागवार गुजरा और उन्होंने उल्टा दरोगा के खिलाफ ही शिकायत दर्ज करवा दी। बिना किसी जांच, गवाही या पक्ष सुने, दरोगा को चौकी प्रभारी के पद से हटाकर लाइन हाजिर कर दिया गया।
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वायरल वीडियो में सामने आया सच्चाई का चेहरा….इस पूरी घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि हर्ष अरोड़ा शांत और संयमित तरीके से व्यवहार कर रहे हैं, जबकि वरिष्ठ अधिकारी गुंडागर्दी की भाषा में व्यवहार करते नजर आ रहे हैं।
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प्रशासनिक लालफीताशाही या न्याय…?यह घटना न केवल पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है, बल्कि इस बात पर भी गंभीर चिंता जताई जा रही है कि क्या अब राज्य में ईमानदारी की कोई कीमत नहीं बची है? क्या कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी अब अफसरशाही के शिकार बनते रहेंगे..?
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खुला पत्र और जनदबाव बढ़ा….इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री उत्तराखंड को एक खुला पत्र लिखा गया है, जिसमें मांग की गई है कि दरोगा हर्ष अरोड़ा को तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए और संबंधित अधिकारी के खिलाफ निष्पक्ष जांच कर मुकदमा दर्ज किया जाए। पत्र में यह भी चेताया गया है कि यदि ऐसा नहीं हुआ, तो यह पुलिस बल के मनोबल पर गहरा आघात होगा।
यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) अजय सिंह के कार्यकाल में पहले भी दो बार अधिकारियों ने बिना जांच के कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मियों को हटाने का फैसला लिया था। सवाल उठता है कि क्या ऐसे फैसले पुलिस बल की कार्यक्षमता को प्रभावित नहीं करेंगे..?
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अब जनता की नजरें सरकार पर……
उत्तराखंड सरकार और पुलिस मुख्यालय के लिए यह एक कसौटी का समय है—क्या वे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के साथ खड़े होंगे या फिर बेलगाम अफसरशाही के सामने झुक जाएंगे..?