“बड़े साहब छुट्टी पर, छोटे साहब कुर्सी पर, ले रहे गर्माहट, दे रहे ऑर्डर, “आई एम द इमिडीएट बॉस”..
छोटे साहब का बड़ा रूप देख मातहत सकते में, बड़े वाले साहब के करीबी शागिर्द होने की चर्चाएं..

पंच👊नामा-ब्यूरो
देहरादून: गढ़वाल के एक जिले में बड़े साहब छुट्टी पर क्या गए, छोटे साहब की तो बांछें खिल गईं। हाथ में प्रभार आया नहीं कि चेहरे पर ‘पावर स्माइल’ आ गई। सबसे पहले अपने नहीं, सीधे बड़े साहब के कमरे में घुसकर कुर्सी पर धम्म से विराजमान हो गए। पर्दा सरका, टेबल पर बेल बजाई, फिर कुर्सी को थोड़ा पीछे सरकाया और बोले – “आई एम द इमिडीएट बॉस!”कहते हैं, पहली बार बड़े साहब की कुर्सी की गद्दी ने भी हलचल महसूस की। चाय वाले से लेकर वायरलेस वाले तक सब सकते में आ गए, क्या छोटे साहब अब सच में बड़े हो गए!” छोटे साहब के चेहरे पर रौनक वैसी ही है जैसे बच्चे को पहली बार मोबाइल हाथ लग जाए।
उन्होंने एक झटके में फाइलों को किनारे किया और मातहतों को सीधी निगाह से देखा और बोले, तुरंत काम करो, बिना सवाल के।” अब हाल यह है कि जो कर्मचारी पहले मज़ाक में “सर-सर” करते थे, अब फुल फॉर्म में “स्ससर” कहने लगे हैं।
छोटे साहब कुर्सी की गर्माहट लेकर अधीनस्थों पर रौब इस तरह गालिब कर रहे हैं जैसे तुगलक सल्तनत दोबारा लौट आई हो। सूत्र बताते हैं कि बड़े साहब के टेबल पर रखे गुलदस्ते को भी छोटा साहब एकटक निहारते हैं, और बीच-बीच में खुद ही कुर्सी पर टिक कर सोचते हैं
— “क्या बात है, कुर्सी में वाकई कुछ तो बात होती है…”फिलहाल, कुर्सी गर्म है, आदेश तीखे हैं, मातहत सकते में हैं, और छोटे साहब, अब खुद को छोटा नहीं मानते।
———————————————-छोटे साहब ने कुर्सी को यूं संभाला जैसे बरसों से उसका इंतज़ार कर रहे हों। बताया जाता है कि छोटे साहब, एक बड़े वाले साहब को अपना गुरु घन्टाल बना चुके हैं और बड़े साहब जब-जब जिले के कमानदार रहे हैं, उनके चर्चे आज भी सबके जुबान पर हैं। अब शागिर्द भी उसी अंदाज़ में उतर आए हैं। साहब ने अपने ऑफिस में बैठना जरूरी नहीं समझा। सीधे बड़े साहब के आलीशान कक्ष में विराजमान हो गए।