पांच साल की इनकम पूरी कर रहा 6 माह में ये ठेका, फिर भी ठेका खत्म करने की कवायद,, आखिर क्यों…

पंचनामा-पिरान कलियर: देसी कहावत है कि ”अपनो पे बस नही चलता और दूसरों के कान ऐंठ दो” ये कहावत दरगाह दफ्तर पर एक-दम सटीक बैठती है। कहने का मतलब ये है कि नियमों को फॉलो कराने में नाकाम दरगाह दफ्तर अपनी जिम्मेदारी से हमेशा भागता आया है और दोष हमेशा व्यवस्थाओं पर रखा गया है। जिस नियम को दफ्तर फॉलो नही करा पाता उसे खत्म करने की कवायद शुरू कर दी जाती है, चाहे उससे दरगाह को फायदा हो या नुकसान। जी हाँ बीते साल दरगाह नीलाम कमेटी ने लम्बी चौड़ी शर्तो के साथ 6 माह के लिए चढ़ावे के ठेके को नीलाम किया था, जिसे इस बार दरगाह प्रशासन खत्म करने की कवायद में लगा है, ऐसा क्यों ” गौर करने वाली बात ये है कि पूर्व में करीब पांच साल के चढ़ावे की चादरों का माल करीब 10 लाख में बेचा गया था, और अब वही चढ़ावा मात्र 6 माह में पांच साल की रकम पूरी कर रहा है, लेकिन बावजूद ठेका समाप्त करने की प्रक्रिया आजमाई जा रही है। दरगाह अधिकारियों का तर्क भी लाजवाब है, उनका कहना है कि चढ़ावे के ठेके से लूटपाट हो रही है, व्यवस्थाएं बिगड़ रही है, जबकि ठेका देने से पहले लम्बी चौड़ी शर्तो का बखान किया गया था, उन शर्तो का पालन कराने के लिए दरगाह दफ्तर जिम्मेदार था लेकिन यहां तो जिम्मेदार ही अव्यवस्थाओं का रोना रो रहे है। हमेशा की तरह अपनी जिम्मेदारी से भागकर किस्सा ही खत्म करने की कवायद पर अमल किया जा रहा है, जबकि अगर दरगाह प्रशासन नियमानुसार ठेकों को संचालित कराए तो दरगाह की इनकम भी बढ़ेगी और व्यवस्थाएं भी दुरुस्त रहेगी। आस्थावान लोगो का कहना है कि चढ़ावे का ठेका होने के बाद कुछ स्वार्थित अधिकारियों कर्मचारियों की आमदनी बंद हो गई थी, जिसके चलते अब ये चाल चली जा रही है। बहरहाल ये कहना गलत नही होगा कि ठेका छोड़ने से पहले लम्बी चौड़ी शर्ते रखी जाती है, लेकिन उनपर अमल कराने में दरगाह दफ्तर हमेशा नाकाम साबित होता है, जबकि नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी दफ्तर अधिकारियों की है।