हरिद्वार

रिक्शा के पहियों पर दौड़ती उम्मीद, मां की मेहनत, बेटी को अफसर बनाने का जज्बा..

पति निकला शराबी, हालात ने तोड़े सपने, फिर भी नही मानी हार, खुद लिख रही अपनी तक़दीर..

पंच👊नामा
प्रवेज आलम, रुड़की: रेलवे स्टेशन के पास जब एक महिला रिक्शा चलाते हुए नजर आई तो राहगीरों की आंखें हैरत से फैल गईं। आमतौर पर पुरुषों के वर्चस्व वाले इस पेशे में एक महिला को देखना किसी के लिए भी चौंकाने वाला था। लेकिन यह सिर्फ एक रिक्शा नहीं था, बल्कि उसके हौसले की गाड़ी थी, जो उसके संघर्ष और जज़्बे की कहानी कह रही थी।दरअसल बिहार की रहने वाली पूजा, जो अब रुड़की को अपना ठिकाना बना चुकी हैं, अपनी मासूम बच्ची के बेहतर भविष्य के लिए रिक्शा चला रही हैं। कभी उन्होंने भी एक खुशहाल जिंदगी का सपना देखा था, लेकिन शराबी पति और हालात ने उनके सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया। जब घर की रसोई ठंडी पड़ने लगी और बच्ची की भूख उन्हें कचोटने लगी, तो उन्होंने फैसला कर लिया—अब वो खुद अपनी तक़दीर लिखेंगी!
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मजबूरी नहीं, आत्मनिर्भरता की उड़ान…..पूजा की जिंदगी की किताब में दर्द के कई पन्ने हैं, लेकिन उन्होंने उसे आंसुओं से नहीं, बल्कि मेहनत की स्याही से लिखा है। पहले उन्होंने घर-घर जाकर काम किया, लेकिन जो पैसे मिलते थे, वो ज़िंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए काफी नहीं थे। ऐसे में उन्होंने हिम्मत दिखाई और रिक्शा चलाने का फैसला किया। सुबह-सुबह जब शहर नींद से जाग रहा होता है, तब पूजा रिक्शा लेकर निकल पड़ती हैं। इस रिक्शा से, वो कचरा बीनने का काम करती हैं ताकि अपनी बच्ची को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकें।
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सड़कों पर दौड़ती उम्मीद….जब पूजा पहली बार रिक्शा लेकर सड़क पर निकलीं, तो लोगों की निगाहें उन पर टिकी रह गईं। कुछ ने हैरानी जताई, कुछ ने मज़ाक उड़ाया, लेकिन पूजा की मंज़िल तो कहीं और थी। उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और हौसले के पहियों को और तेज़ घुमा दिया। अब लोग उनकी मेहनत की इज्जत करने लगे हैं, और कई लोग उनकी मदद के लिए भी आगे आए हैं।
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“बेटी को अफसर बनाऊंगी…!”पूजा की आंखों में सपने तैरते हैं, लेकिन ये वो सपने नहीं जो रात में देखे जाते हैं, बल्कि वो जो दिन में खुली आंखों से पूरे करने की ठान ली जाती है। उनकी सबसे बड़ी चाहत है कि उनकी बेटी पढ़-लिखकर अफसर बने, ताकि उसे वो संघर्ष न झेलना पड़े जो उन्होंने किया। पूजा कहती है “जो तक़दीर मेरे साथ नहीं थी, मैं वही तक़दीर अपनी बेटी के लिए लिखूंगी!”—पूजा की ये बात उनकी जिद, उनके हौसले और उनकी लड़ाई को बयान करती है।
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ममता की चादर तले संघर्ष की रोटी…..रुड़की रेलवे स्टेशन के पास बिछी ये चादर सिर्फ एक गद्दी नहीं, बल्कि एक मां की ममता और मजबूरी की कहानी कह रही है। फटी चप्पलों, टूटी उम्मीदों और बेरहम हालात के बावजूद इस मां की गोद अपनी बच्ची के लिए अब भी दुनिया की सबसे महफूज़ जगह है।बगल में रखे बर्तन, सामान के चंद थैले और हाथ में एक मामूली सा भोजन—शायद ये किसी आम आदमी के लिए कुछ ना हो, लेकिन इस मां के लिए ये उसके संघर्ष का हासिल है, जिसे उसने दिनभर मेहनत करके जुटाया है। उसकी आंखों में थकान है, मगर ममता में कोई कमी नहीं। वो खुद चाहे अधपेट सो जाए, मगर अपनी बच्ची को भरपेट खिलाने के लिए आखिरी रोटी तक देने को तैयार है।
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दुनियां की सबसे बड़ी ताकत…..इस छोटी-सी बच्ची के लिए दुनिया की सबसे बड़ी ताकत उसकी मां है—वो मां जो समाज की बेड़ियों को तोड़कर, तानों की परवाह किए बिना, अपने खून-पसीने से अपनी बेटी के लिए एक नई सुबह लिख रही है। ये तस्वीर सिर्फ भूख की नहीं, बल्कि हौसले की भी है। ये बताती है कि मां का प्यार किसी महल का मोहताज नहीं होता, वो फुटपाथ पर भी अपनी ममता की चादर बिछाकर अपने बच्चे को दुनिया की सबसे बड़ी दौलत—प्यार और सुरक्षा—दे सकती है। आपका प्रिय पंच👊नामा न्यूज़ सलाम करता है इस मां को, जो हर परिस्थिति में अपने बच्चे का सहारा बनी हुई है।“आपकी बढ़ाए हिम्मत, करे मदद – एक मां के संघर्ष को दें सहारा दें…
जब एक मां अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य के लिए सड़क पर रिक्शा चला सकती है, तो क्या हम उसके सफर को थोड़ा आसान नहीं बना सकते..? आपकी छोटी-सी मदद पूजा के बड़े सपनों को पंख दे सकती है। ””आइए, इस हौसले को सलाम करें और इसकी राह में रोशनी बनें!

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