पंच👊नामा
प्रवेज़ आलम- रमजान शरीफ: कुरआन गवाह है कि अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है। इस्लाम की तवारीख़ में जब-जब सब्र का नाम लिया जाएगा, आल-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन का नाम सबसे ऊपर आएगा। इसी तरह सब्र का नाम आए और हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबरी का ज़िक्र न हो, यह नामुमकिन है। हजरत इमाम हुसैन के सब्र ने इस्लाम को बुलन्दी बख्शी। वहीं, सब्र की बुलंदी ने अलाउद्दीन अली अहमद को साबिर का लक़ब बख्शा। यही वजह है कि सब्र के महीने रमजान में साबिर पाक की सरजमीन पिरान कलियर में खुदा की रहमतों का अलग ही बसेरा है।
सब्र और इबादत का मुक़द्दस महीना रमज़ानुल मुबारक पूरी दुनियां को इंसानियत और सब्र का पैगाम देता कर्बला का वाक्या, ये बताने के लिए काफी है कि सब्र करने वालो के साथ अल्लाह है। सरजमीने-हिंदुस्तान में सब्र की मिसाल हजरत अलाउद्दीन अली अहमद जिन्हें सब्र ने साबिर बनाया, और आज पूरी दुनियां में अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक का डंका बजता है, सब्र को भी सब्र बख्शने वाले कर्बला के शहीद आलम-ए-इस्लाम के लिए नजीर है।इन दिनों रमज़ानुल मुबारक का बा-बरकत पाक महीना चल रहा है। रोजेदार इस महीने में सिर्फ खुदा के लिए खुदा के हुक्म से और खुदा की खुशी के लिए अपनी पसंद की तमाम चीजों को छोड़कर अपनी ख्वाहिश को रोककर सब्र करता है तो खुदा ऐसी कुर्बानी देने वाले नेक बंदे से राजी होता है। मोमिन रमजान में सब्र का पैगाम देता है और अल्लाह के फरमान को जिसे कुरआन कहता है “इन्नल्लाह मा अस साबरीन” का पूरी पबन्दगी के साथ पालन करता है। इस्लाम की तवारीख़ में सब्र का बेहद ऊंचा मुकाम है, आल ए रसूल हजरत इमाम हुसैन ने पूरी दुनियां को सब्र और इंसानियत का पैगाम देकर पूरे आलम-ए-इस्लाम के लिए एक नजीर पेश की, तो वही सरज़मीने हिंदुस्तान में महान संत (वली) हजरत अलाउद्दीन अली अहमद ने 12 साल तक बिना कुछ खाय-पिये सब्र का ऐसा मौजिजा पेश किया जिसने अली अहमद को अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक बना दिया। पिरान कलियर स्थित दरगाह साबिर पाक आज भी पूरी दुनियां को सब्र का पैगाम देती है।
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सब्र ने बनाया साबिर………..
दरगाह साबिर पाक के सज्जादानशीन शाह अली एजाज साबरी ने बताया, साबिर पाक सब्र को अपनी पैदाईस के साथ ही लाए थे। पैदाईस के समय से ही साबिर पाक एक दिन मां का दूध पिते थे और दूसरे दिन रोजा रखते थे। 6 साल की उम्र में साबिर पाक के वालिद-ए-मोहतरम पर्दा फरमा गए, घर मे तंगदस्ती का आलम था इसलिए साबिर पाक की वालिदा उन्हें अपने भाई बाबा फरीदुउद्दीन गंजे शकर रह. के यहां छोड़ आई, जहा बाबा फरीद ने साबिर पाक को लंगर का इंतजाम और उसे तक्सीम करने का हुक्म दिया। इसके बाद साबिर पाक रोजाना अपने हुजरे से बाहर तशरीफ लाते और लंगर तक्सीम करते और फिर हुजरे में चले जाते। बारह साल बाद साबिर पाक की वालिदा ने जब साबिर पाक को देखा तो हैरत में रह गई, साबिर पाक ने बताया उन्होंने 12 साल तक कुछ नही खाया, ये बात सुनकर बाबा फरीद भी हैरत में पड गए और भान्जे को अपने पास बुलाकर उसकी पेशानी को चुमा और कहा यह बच्चा साबिर कहलाने के लिए पैदा हुआ है। आज से यह मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर है।
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सब्र को भी सब्र कराया हुसैन ने…
खानकाह बज्म-ए-तसल्लिया के गद्दीनशीन व इस्लामिक जानकर सुफियान बाबा बताते है कि हजरत इमाम हुसैन जब दश्ते कर्बला में उतरे, तो आपने अहले बैत में यह फ़रमाया कि मेरी मुसीबत व जुदाई पर सब्र करना। हरगिज मुंह न पीटना, बाल न नोचना और गिरेबां चाक न करना। ऐ मेरी बहन जैनब तुम फातिमा जोहरा की बेटी हो, जैसा उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम की जुदाई पर सब्र किया था, उसी तरह तुम भी मेरी मुसीबत पर सब्र करना। इसी तरह हमें भी सब्र व शुक्र से काम लेना चाहिये। ताकि इमाम आली मकाम की खुशनूदी हासिल हो।
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सब्र और गमखारी का महीना रमज़ान…..
हिन्द के राजा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती गरीब नवाज के खादिम खुशतर मियां ने बताया रमजान सब्र और गमखारी का महीना है, रमजान में मोमिन सब्र करता है और गरीब मजलूमों के साथ गमखारी का मामला रखता है, यह महीना भाईचारे और इंसानियत का पैगाम भी देता है। रोजा सिर्फ दिनभर भूखा रहने का नाम नहीं बल्कि रोजा इंसान को इंसान से प्यार करना सिखाता है।