सचिवालय घेरने जा रहे पुलिसकर्मियों के परिजनों को रोका, टंकी पर चढ़े संविदा कर्मचारी..
4600 ग्रेड पे का शासनादेश जारी करने की लगातार उठा रहे मांग..
पंच 👊 नामा ब्यूरो
हरिद्वार: प्रदेश में हजारों करोड़ की घोषणाओं के चुनावी मौसम में पुलिसकर्मियों के परिजनों की एक अदद मांग पूरी होने का नाम नहीं ले रही है। शुक्रवार को गुस्साए परिजन एक बार फिर राजधानी की सड़कों पर उतरे और जीओ जारी करने की मांग को लेकर सचिवालय कूच किया लेकिन पुलिस ने एक बार फिर उन्हें रास्ते में ही रोक लिया। दूसरी तरफ लोक निर्माण विभाग के संविदा कर्मचारी अपनी मांग पूरी करने को लेकर पानी की टंकी पर चढ़ गए। उन्हें उतारने की जद्दोजहद चल रही है।
4600 रुपये ग्रेड पे की मांग कई वर्षों से चली आ रही थी। बीते अक्टूबर माह में मुख्यमंत्री ने ग्रेड पर बढ़ाने की घोषणा तो कर दी, लेकिन अभी तक शासनादेश जारी नहीं हो पाया है। जल्द ही आचार संहिता लगने जा रही है इसलिए पुलिस कर्मियों और उनके परिजनों को लग रहा है कि यह मुद्दा एक बार फिर अगली सरकार बनने तक लटक सकता है।
इसलिए लगातार शासनादेश जारी करने की मांग उठाई जा रही है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री आवास घेरने जा रहे पुलिसकर्मियों के परिजनों से देहरादून पुलिस की तीखी नोकझोंक हुई थी और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। तब 31 दिसंबर तक शासनादेश जारी करने का भरोसा दिलाया गया था लेकिन यह डेटलाइन गुजरने पर भी जब शासनादेश जारी नहीं हुआ तो पुलिसकर्मियों के परिजन एक बार फिर से सड़क पर उतर आए महिलाएं नारेबाजी करते हुए सचिवालय कूच करने के लिए चल पड़ी। लेकिन रास्ते में यह डेटलाइन गुजरने पर भी जब शासनादेश जारी नहीं हुआ तो पुलिसकर्मियों के परिजन एक बार फिर से सड़क पर उतर आए महिलाएं नारेबाजी करते हुए सचिवालय कूच करने के लिए चल पड़ी। पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर रास्ते में ही उन्हें रोक लिया। दोनों तरफ से काफी नोकझोंक हुई और फिलहाल पुलिसकर्मियों के परिजनों को एक बार फिर से समझाने बुझाने का प्रयास चल रहा है।
दूसरी तरफ लोक निर्माण विभाग के संविदा कर्मी मांग पूरी ना होने के चलते पानी की टंकी पर चढ़ गए उन्हें उतारने के लिए अधिकारी प्रयास कर रहे हैं। अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है कर्मचारियों का कहना है कि मांगों के संबंध में शासनादेश जारी होने तक वह नीचे नहीं उतरेंगे। अगर जबरन उतारने का प्रयास किया गया तो वह छलांग भी लगा सकते हैं। पुलिस कर्मियों के ग्रेड पर के बाद अब संविदा कर्मियों का यह मामला भी अफसरों के गले की फांस बनता नजर आ रहा है।