पंच👊नामा
पिरान कलियर: चुनाव का बिगुल बज चुका है और पिरान कलियर की गलियों में सियासी कसमसाहट अपने चरम पर है। हर तरफ नारों की गूंज है, तो कहीं बिरादरी के नाम पर सियासत का खेल। इस बार का चुनाव सिर्फ विकास की लड़ाई नहीं है—यह सत्ता, सियासत और रिश्तेदारी की खिचड़ी से बना ऐसा सियासी हलवा है, जिसे बड़े नेताओं ने अपने अपने चमचे से हिलाना शुरू कर दिया है।
————————————-बसपा की प्रत्याशी समीना, विधायक हाजी मोहम्मद शहजाद की बहन हैं। उनके पति सलीम प्रधान पिछले छह सालों से राजनीति में ‘स्लीप मोड’ पर रहे। जनता की नब्ज टटोलने और विपक्ष की भूमिका निभाने के बजाय उन्होंने अपनी चुनावी जमीन को यूं बंजर छोड़ दिया जैसे किसान सूखा पड़ने पर हल चलाना बंद कर देता है। अब जब चुनाव सिर पर है, तो विधायक को अपने पूरे कुनबे के साथ मैदान संभालना पड़ रहा है।पर सोचने वाली बात यह है कि जो नेता पिछले चुनाव में ‘कुछ ही वोटों से’ हार गया था, उसे इस बार इतना पसीना क्यों बहाना पड़ रहा है..? विधायक से लेकर उनके रिश्तेदार तक हर दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। क्या सिर्फ बिरादरी का नाम ही सलीम प्रधान की नैया पार लगा सकता है, या फिर यह चुनाव उनकी खामियों को अंतिम रूप देने वाला साबित होगा..?
————————————-
बिरादरी का जादू -या- सियासी मुद्दा…..कलियर में कांग्रेस और बसपा दोनों ने बिरादरी के मोहरे चल दिए हैं। कांग्रेस का झोझा बिरादरी का उम्मीदवार अपने बिरादरी के विधायक की मौजूदगी का पात्र है, तो बसपा की समीना को लक्सर विधायक का पूरा खांदानी समर्थन मिला हुआ है। यहां बिरादरी की लामबंदी की कहानी इतनी पुरानी हो चुकी है कि जनता को याद भी नहीं होगा कि आखिरी बार उन्होंने किसी मुद्दे पर वोट डाला था।
————————————-
निर्दलीय का दमखम: ‘सिस्टम’ से बाहर का सिस्टम…..जब राजनीति बिरादरीवाद की दलदल में धंसती है, तब निर्दलीय प्रत्याशी उम्मीद की तरह उभरते हैं। इस बार भी कई मजबूत निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं, जो पार्टियों की खेमेबाजी से परे जनता का समर्थन जुटाने में लगे हैं। अगर बिरादरी के वोट बंटे तो यही निर्दलीय “किंगमेकर” बन सकते हैं।
————————————-
बिरादरी की चाशनी या जनता का कड़वा सच….?सलीम प्रधान की सियासी जमीन ऐसी है कि अब उसे ‘बंजर’ कहना भी तारीफ होगी। लेकिन क्या बिरादरी की मिठास–विकास के सवालों को भुला सकती है..? विधायक और उनका कुनबा भले ही अपने सारे रिश्तेदारों के वोट गिन चुके हों, पर क्या जनता अब भी बिरादरी के जाल में फंसने को तैयार है..? या फिर इस बार जनता खुद अपना फैसला लिखेगी—विकास का, जवाबदेही का, और उस सच का जो हर बार बिरादरी की दीवारों के पीछे दम तोड़ देता है।
————————————-तो इंतजार कीजिए, क्योंकि पिरान कलियर में सियासत का पारा चढ़ चुका है। अब देखना यह है कि यहां सियासी तंदूर में पक रही बिरादरी की रोटियां किसके हाथ में जाती हैं—जनता की उम्मीदों की आंच में या फिर पुराने ढर्रे की ‘परिवारवाद की थाली’ में।