पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: खानपुर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने मिशन 2024 का नारा देते हुए निर्दलीय ताल ठोक कर कुछ महीनो में ही पूरी लोकसभा नाप डाली। जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित कर भाजपा-कांग्रेस दोनों से दो-दो हाथ करने और चुनाव में पटखने की चेतावनी दी।
भाजपा-कांग्रेस से त्रस्त लोग इसी वजह से बड़ी संख्या में उमेश के साथ जुड़े। लेकिन यह क्या जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते गए, वैसे-वैसे उमेश कुमार को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में “जीत की दिल्ली” दूर नजर आने लगी।
नतीजतन उमेश कुमार को उसी कांग्रेस के चौखट पर एड़ियां रगड़नी पड़ी, जिसको कुछ दिन पहले तक वह मुंह भर-भर कर कोस रहे थे। हरिद्वार से दिल्ली तक की खबर आम है कि उमेश कुमार कांग्रेस से टिकट लेने के लिए पूरी जान लगाए हुए हैं।
सवाल यह है कि जब उमेश कुमार को खुद पर इतना ही भरोसा था तो फिर कांग्रेस नेताओं की चाकरी करने की जरूरत क्यों आन पड़ी। दूसरा सवाल यह है कि उमेश ने आमजन को कांग्रेस और भाजपा की कमियां गिना कर अपने नंबर बढ़ाने का काम किया है।
अब वह किस मुंह से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जनता के बीच जाने का सोच रहे हैं। क्या यह कांग्रेस और भाजपा से त्रस्त जनता के साथ दगा नहीं है। अगर अपने फायदे के लिए ही कभी कांग्रेस और कभी बीजेपी को कोसना है तो फिर जनता के कंधों पर बंदूक रखकर चलाने की क्या जरूरत। उमेश के इस बदले रूप को लेकर भी खूब चर्चाएं हो रही हैं। मजेदार बात यह है कि 80% कांग्रेस उमेश कुमार को भाजपा की बी टीम बोल रही है और 50% भाजपा उमेश कुमार को कांग्रेस नेता मान चुकी है।
सवाल उमेश कुमार को लेकर दिल्ली में एक नेता से दूसरे नेता के बंगले पर लेकर घूम रहे हरिद्वार व उत्तराखंड के कांग्रेस नेताओं से भी है। यदि उन्हें उमेश कुमार ही लोकसभा सीट कांग्रेस की झोली में डालते नजर आ रहे हैं तो फिर कुछ दिन पहले तक वह दूसरे नेताओं के पिछलग्गू क्यों बने हुए थे।