
पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: कहने को तो पूरे प्रदेश में कानून का राज है। लेकिन हरिद्वार में अगर सिर पर एक पूर्व कैबिनेट मंत्री के करीबी का हाथ है तो गुंडे-मवालियों की भी पूरी मौज है। वह किसी का रास्ता रोक कर जान से मार दें या फांसी पर लटका दें। कितना भी बड़ा अपराध हो, मुलजिम एक बार पूर्व मंत्री के छूटभैये नेता की शरण में आ गए तो फिर कानून भी पीड़ित की मदद करने में बौना साबित होता है। देहात में एक पीड़ित परिवार ऐसे ही गुंडों का शिकार होने के बाद इंसाफ के लिए भटक रहा है।
हाइवे पर फिल्मी अंदाज में चलती कार रोककर लोहे की रॉड, डंडों और सरिये से हमला करने के बावजूद कानून को ठेंगा दिखाने वाले दबंग खुले घूम रहे हैं।
कारण वही है कि हमले के फौरन बाद उन्होंने “नेता शरणम गच्छामि” का मंत्र जप लिया। उसके बाद एक ऐसा कोड वर्ड जारी हुआ कि पुलिस के पांव ही जम गए।
लंबे कहे जाने वाले कानून के हाथ जानलेवा हमले में अपना जबड़ा और हाथ तुड़वाने वाले परिवार को इंसाफ दिलाने में छोटे पड़ गए। हैरानी की बात ये है कि रील बनाने, हुक्का पीने, खुले में शराब पीने, भीख मांगने वालों की धरपकड़ करने वाली पुलिस गम्भीर धाराओं में नामजद आरोपियों को नहीं पकड़ पा रही है।
पीड़ित ही नहीं इस प्रकरण से वाकिफ लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या अब पूर्व मंत्री का करीबी छुटभैया तय करेगा कि अपराधी को गिरफ्तार किया जाना चाहिए या नहीं।
यदि ऐसा है तो जिले की कमान क्यों ना पूर्व मंत्री के करीबी को ही दे दी जानी चाहिए।
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धामी जी, क्या यही है जीरो टॉलरेंस….?मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी “जीरो टॉलरेंस” की बात करते हैं। माफिया, अपराध और गुंडागर्दी पर सख्त कार्रवाई की घोषणाएं होती हैं। मगर जब मामला किसी सत्तारूढ़ दल के पूर्व मंत्री के करीबी से जुड़ा हो, तो क्या वो सख्ती फाइलों में सिमट जाती है?
सवाल यही है, क्या धामी सरकार में भी सिफारिश कानून से बड़ी है ? यह सवाल अब सिर्फ पीड़ित परिवार का नहीं, बल्कि पूरे हरिद्वार और उत्तराखंड की कानून व्यवस्था पर है।
अगर गुंडे सत्ता के करीबी हैं तो क्या उन्हें गिरफ़्तारी से छूट मिल जाएगी? क्या अब अपराध की गंभीरता नहीं, आरोपी की सियासी पहुंच देखी जाएगी…..?
नोट: जल्द पढ़ें.. “धामी राज में पूर्व मंत्री के गुर्गे ने कैसे हाईजैक किया हरिद्वार का पुलिस प्रशासन…✍️